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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘तो वहां आपके पास मोटरगाड़ी है?’’

‘‘मेरे पास नहीं, मेरी माता जी के पास है। लन्दन में मेरे पिता जी के पास है। अतः इन दो स्थानों पर मुझे सवारी के लिए गाड़ी निःशुल्क मिल जाती है।’’

मैत्रेयी अब इस राजनीतिक जर्नलिस्ट से परिचय का लाभ समझने लगी थी। पांच मिनट पूर्व ही वह अपने समीप बैठे पत्र-प्रतिनिधि में अरुचि अनुभव कर रही थी।

शेष यात्रा में दोनों बहुत सावधान रहे कि वार्त्तालाप में पुनः वे एक-दूसरे के पांव पर पांव न रख बैठें।

पूर्ण यात्रा में लन्दन और दिल्ली की सामाजिक अवस्था और भावी सामाजिक प्रवहन पर ही वार्त्तालाप होता रहा। एक बात तेजकृष्ण समझ गया था कि जैसे राजनीति में कुछ लोग उसको ‘फैनेटिक’ (घोर हठधर्मी) मानते हैं वैसे ही यह संस्कृत पढ़ी लड़की आज से सहस्त्रों वर्ष पूर्व लिखे ग्रंथ पढ़कर अवश्य हठधर्मी होगी। इस कारण वह भारत की प्राचीन महिमा पर बात करने से बचता रहा।

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