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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


साथ-साथ चलते हुए मैत्रेयी ने अपना परिचय संक्षेप में दे दिया। और दिल्ली में अपने आने का कारण भी बता दिया।

‘‘तो तुम पहले हस्पताल जाना पसन्द करोगी?’’ यशोदा ने पूछ लिया।

‘‘जी! इस पर भी मैं मिस्टर बागड़िया के घर तक पहले चलूंगी। वहां से लौट कर हस्पताल में आना चाहती हूं।’’

‘‘मैं तो सिविल लाइन्स में रहती हूं। अच्छा यह होगा कि यहां से जाते हुए हम विलिंग्डन हस्पताल चलें। वहां अपनी माताजी का समाचार लेकर ही तुम कार्यक्रम बनाना।’’

चाहती तो मैत्रेयी भी यही थी। परन्तु यह वह अपने मुख से कह नहीं सकी। इस कारण वह चुप रही। अब यशोदा ने पूछ लिया, ‘‘तेज से तुम्हारा कब से परिचय है?’’

‘‘पैंतालीस घण्टे का। हवाई जहाज में घटनावश हमारे बैठने का स्थान साथ-साथ था और फिर बातों ही बातों में परिचय हो गया। यह कहने लगे कि आप यहां अपने मकान में रहती हैं और मैं वहां रह सकूंगी।’’

इस संक्षिप्त और कल्प काल के परिचय पर भी लड़की को देख यशोदा इच्छा करने लगी थी कि तेज से इसका विवाह हो सके। इस पर भी वह कुछ अधिक कह नहीं सकी।

तेज आया तो गाड़ी वह चलाने लगा। गाड़ी में ड्राईवर नहीं था।

‘‘आते हुए गाड़ी कौन चलाकर लाया था?’’ मैत्रेयी ने पूछ लिया।

‘‘मैं स्वयं चलाकर लायी थी।’’ यशोदा ने बताया।

‘‘तो ड्राईवर कोई नहीं है?’’

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