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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘यह खूब। तो फिर भारत की विजय का क्या अभिप्राय है?’’

‘‘सैनिक विजय भारत की होगी, परन्तु कूटनीति में, सदा की भाँति पाकिस्तान लाभ में रहेगा।’’

‘‘यही तो पूछ रही हूं कि इसका क्या अर्थ है?’’

‘‘वह इस कारण कि भारत जिनको अपना मित्र समझता है, वे महा स्वार्थी और धूर्त हैं। भारत सरकार के अधिकारी मूर्ख हैं। वे न तो राजनीति समझते हैं और न ही दूसरों की मनोवृत्ति समझते हैं।’’

मैत्रेयी इस कथन को युद्ध पूर्वग्रहों का परिणाम समझती थी। इस कारण उसने पूछ लिया, ‘‘इसे आप युक्ति तथा प्रमाणों से समझाइये तो बात समझ में आ सकेगी। देखिए! आप अपने मालिकों के विचारों को पुष्ट करने के लिये सहस्त्रों रुपये के खर्चे को सार्थक कर रहे प्रतीत होते हैं।’’

मैत्रेयी ने इस बार तेजकृष्ण को मूर्ख तो नहीं कहा, परन्तु उसे मालिकों के स्वर में स्वर मिला कर उनसे धन ऐंठने वाला कह दिया।

तेजकृष्ण हंस पड़ा। हंसते हुए बोला, ‘‘ईश्वर का धन्यवाद है कि आपने आज मुझे मूर्ख नहीं कहा। बात यह है कि मूर्ख तो युक्ति कर नहीं सकता और आप मुझे अपनी बात युक्ति से स्पष्ट करने को कह रही हैं। आपने यह भी कहा है कि कदाचित् मैं अपने अंग्रेंज़ मालिकों के मनोभावों का प्रदर्शन कर अपना वेतन हलाल कर रहा हूं। यह भी मैं आपकी अपने प्रति प्रशस्ति ही समझ रहा हूं। एक मूर्ख यह काम नहीं कर सकता। इस पर भी आपने मुझे धूर्त तो कहा ही है। वह मैं नहीं हूं।’’

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