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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘भारत और चीन के भीतर तिब्बत देश के होने से मैकमोहन लाईन का महत्व चीन के लिए नहीं था। कारण कि चीन तो पहले ही इस रेखा से सैकड़ों मील दूर था। परन्तु तिब्बत के चीन का भाग बन जाने से चीन के लिये इन सीमा रेखाओं का बहुत महत्व हो गया है।

‘‘मेरा विचार है कि दो वर्ष में चीन में युद्ध की तैयारी पूर्ण हो जायेगी। सैनिक तैयारी के लक्षण तिब्बत में स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। मैंने पीकिंग में तिब्बत जाने की स्वीकृति माँगी थी। वह नहीं दी गई।

‘‘इसके विपरीत भारत सरकार के एक ब्रिगेडियर कहते थे कि प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू तथा सुरक्षा मन्त्री समझते हैं कि चीन से युद्ध नहीं होगा। फिर हिमालय पर सुरक्षा प्रबन्ध के लिये धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं है। इस कारण भारत ने सैनिक कार्यों के लिये विचार करना छोड़ कर भूमण्डल की राजनीति में अपनी सामर्थ्य से अधिक टांग अड़ानी आरम्भ कर दी है। हमने रूस तथा अमेरिका की प्रतिस्पर्धा में एक का पक्ष लेता आरम्भ कर दी है। आर्थिक सहायता हम अमेरिका और उसके साथियों से लेते हैं तथा सार्वजनिक रूप में समर्थन रूस का करते हैं।’’

‘‘परन्तु सम्वाददाता महोदय!’’ मैत्रेयी ने कह दिया, ‘‘अमेरिका के लोग चरित्रहीन भी तो बहुत हैं।’’

‘‘भारत को उनके चरित्र का क्या करना है। हमें तो उनसे निर्मित शस्त्रास्त्र और उनके टैक्निकल ज्ञान से लाभ उठाना है। यह तब तक सम्भव नहीं जब तक रूस का समर्थन सामान्य जनता में करना बन्द न किया जाये।’’

मैत्रेयी ने कहा, ‘‘मैंने आपको हवाई जहाज में मूर्ख कहा था। मैं अब समझती हूं कि मैंने भूल की थी और उसके लिए आपसे क्षमा याचना करती हूं।’’

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