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			 उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘लाया तो हूँ। मैंने फोन पर बताया था न?’’
‘‘कहाँ है वह, मेरा मतलब भाभी?’’
‘‘वह देखो! शिव ने उसे मेज पर बैठा दिया है।’’ उमाशंकर ने प्लास्टिक के डिब्बे में रखी गुड़िया की ओर संकेत कर दिया। प्रज्ञा ने उस ओर देखा तो उमाशंकर ने कह दिया, ‘‘अभी बीवी का मॉडल लाया हूँ। मतलब यह कि वैसी ही सुन्दर बीवी लाऊँगा।’’
सब हँस पड़े। शिवशंकर अपने स्थान से उठा और गुड़िया का प्लास्टिक का डिब्बा उठा लाया। 
प्रज्ञा ने देखा और कह दिया, ‘‘मॉडल तो पसन्द है। परन्तु ऐसी लड़की तो शायद यहाँ मिल नहीं सकेगी।’’
‘‘क्यों नहीं मिल सकेगी?’’ ज्ञानस्वरूप ने कह दिया, ‘‘अगर भाई उमाशंकर इज़ाज़त दें तो मैं ऐसी, शायद इससे इक्कीस इनके लिए ला सकता हूँ।’’
‘‘तो जीजाजी, दिखा दीजिए, मगर एक बात कहे देता हूँ।’’
उमाशंकर ने कहा। 
‘‘क्या?’’
‘‘मैं परमात्मा को मानता हूँ।’’
‘‘वह तो मैं भी मानता हूँ। मेरी जुबान में उसका नाम कुछ दूसरा है। मैं और मेरे घरवाले उसे खुदा कहते हैं।’’
इस पर रविशंकर ने कह दिया, ‘‘ मगर वह तो सातवें आसमान पर बैठा है?’’
‘‘जी हां! और वह सतवां आसमान यहीं तो है।’’
‘‘और फरिश्ते कहां से आते जाते हैं?’’
			
						
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