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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘उसकी साक्षी मान्य नहीं।’’

चौधरी चुप रहा। इस पर गदरा उठकर कहने लगी, ‘‘मैं भी इसी सम्बन्ध में कल साधु से मिला था। हमारे पड़ौस की लड़की काजू के, जो बिन्दू से दो वर्ष छोटी है, सज्ञान होने की घोषणा हो चुकी है। मेरी पत्नी ने कहा कि साधु से मिलकर मैं इसका कारण पूछूँ।

‘‘साधु ने बताया था कि वह स्वयं बिन्दू से विवाह करना चाहता है। इसके लिए वह मुझे एक सौ रुपया देना चाहता था। मैंने रुपया लेने से इनकार करते हुए कहा कि लड़की स्वयं इस विषय से निर्णय करेगी।

‘‘यह सुनकर साधु ने कहा, वह उसके सज्ञान होने की घोषणा नहीं करेगा। मेरा कहना था कि यह पाप होगा। उसका कहना था कि वह पाप से निपट लेगा।

‘‘मैं लौट आया था। लड़की सोना से कुछ कहने गई थी। उसने क्या कहा, यह मुझे विदित नहीं है।’’

कबीले की पंचायत से पूछकर सरपंच ने निर्णय सुनाते हुए कहा, ‘‘चौधरी का अपराध यह है कि उसने शव को नदी में बहा दिया। उसको पहले भगवान की सेवा में उपस्थित नहीं किया। इस अपराध के लिए एक सौ रुपए का दण्ड दिया जाता है। इन रुपयों से कबीले में भोज होगा।’’

‘‘मेरे पास सौ रुपए नहीं हैं।’’

‘‘इसके लिए तुम कबीले के लोगों से ऋण ले सकते हो। बाद में चुका देना। किन्तु दण्ड कम नहीं किया जाएगा।’’

पंचायत उठने से पूर्व गदरे ने पूछा, ‘‘मेरी लड़की बिन्दू का क्या होगा?’’

‘‘नये पुरोहित के आने तक वह विवाह नहीं कर सकती।’’

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