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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘केवल-मात्र घटनावश।’’

‘‘जिस इलाज से कई बार रोगी ठीक हो जाय फिर वह इलाज ‘क्वेकरी’ नहीं रह जाता।’’

इस पर डॉक्टर को सन्देह होने लगा कि औरत ठीक हो गई है। इस कारण उसने कह दिया, ‘‘ठीक होना निर्णायक नहीं है। उसके ठीक होने में वैज्ञानिक कारण ढूँढ़ना पड़ता है।’’

‘‘यह तो आप ढूँढ़ लीजिएगा। हम पूछ रहे है कि कितने रोगी ठीक होने पर आप उसका कारण ढूँढ़ना आरम्भ करेंगे।’’

विवश डॉक्टर को कहना पड़ा, ‘‘कम-से-कम बीस रोगी ठीक होने के बाद ही उस पर कुछ विचार किया जा सकता है।’’

माइकल ने कहा, ‘‘हमने उस औरत को ठीक करने वाले को अपने पास नौकर रख लिया है, और हम उसकी दवाई का ऐसे ही रोगियों पर प्रयोग करके परिणाम जानना चाहते हैं।’’

डॉक्टर का मुख मलिन हो गया। सोफी देख रही थी। उसने कहा, ‘‘मैं चाहती हूँ कि उसको हस्पताल में चिकित्सा करने के लिए न ले जाया जाए इससे आपको ‘क्वेकरी’ देखने का अवसर नहीं मिलेगा। ठीक है न! आप यही तो चाहते हैं?’’

‘‘एक बात और है। यदि कोई चोट से घायल व्यक्ति हो तो उसे हमारे ‘आउट-हाउस’ में भेज दीजिए। हम आपकी बदनामी देखना नहीं चाहते।’’

चाय आई। पीते हुए माइकल ने कहा, ‘‘आज एक फुटबॉल प्लेयर आया होगा। उसकी टाँग में स्प्रेन हो गई है। उसको यहाँ भेज दीजिए।’’

‘‘मैं उसको प्लास्टर लगाने के लिए कह आया हूँ।’’

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