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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


इस प्रकार देश में बदल रहे राजनीतिक चित्र के साथ ईसाई धर्म-प्रचार की योजना के विषय में विचार होने लगा।

यह सम्मेलन एक मास तक चलता रहा और स्टीवनसन उग्र रूप से इसमें भाग लेता रहा।

इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए लूमडिंग के कमांडिंग जनरल की पत्नी सोफी माइकल भी आई हुई थीं। वे अपने साथ सोना को भी लाई थीं। सोफी तो सम्मेलन में भाग लेने के लिए हॉल में चली जाती थीं, परन्तु सोना बहार लॉबी में बैठी अपनी मालकिन के लिए ऊनी स्वेटर बुनती रहती थी। बिन्दू ने पहले दिन ही उसको पहचान लिया था और उससे छिपकर बैठी रही थी। रात को बिन्दू ने मिस्टर स्टीवनसन को बताया,

‘‘यहाँ बड़ौज की माँ बैठी दिखाई दी है। वह एक अंग्रेज़ औरत के साथ यहाँ आई है, जो आपकी मीटिंग में भाग ले रही हैं।’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘फिर कुछ नहीं। उसके सम्मुख हो जाने पर क्या कहना होगा, इसका निश्चय कर लेना चाहिए।’’

‘‘बस, यही कि तुम मेरी सेक्रेटरी बनकर आई हो और तुम्हें इस काम का दस रुपए दैनिक वेतन मिलता है।’’

‘‘और उसके लड़के के विषय में?’’

‘‘यही कि वह स्टोप्सगंज में रहता है और नौकरी करता है।’’

‘‘यदि वह मुझे अपने साथ ले चलना चाहे तो?’’

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