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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...

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साधु की पत्नी का देहान्त हुए कई वर्ष हो चुके थे और वह बिन्दू से विवाह करने की इच्छा रखता था। यही कारण था। कि वह बिन्दू के सज्ञान होने की घोषणा नहीं करता था। उसका विचार था कि बिन्दू के माता-पिता उससे इस घोषणा करने के लिए कहेंगे तो वह बिन्दू से विवाह का प्रस्ताव कर देगा। बिन्दू के माता-पिता आए नहीं और इसलिए घोषणा भी नहीं हुई।

बिन्दू की सखी काजू, जो उससे दो वर्ष छोटी थी, के विषय में घोषणा हुई तो बिन्दू की माँ को चिन्ता लगने लगी। उसने बिन्दू के पिता से कहा और उस दिन वह साधु से मिलकर इस बात की घोषणा किए जाने की माँग करने लगा। साधु ने पूछ लिया, ‘‘किससे विवाह करना चाहते हो लड़की का?’’

‘‘चौधरी के लड़के बड़ौज से।’’

‘‘मैं भी उससे विवाह का इच्छुक हूँ।’’

‘‘ऐसी स्थिति में लड़की ही निर्णय करेगी।’’

‘‘तुम क्यों नहीं?’’

‘‘प्रथा ऐसी ही है।’’

इस पर साधु ने लेन-देन की बात करनी चाही। बहुत बातें हुईं और निर्णय हुआ कि बिन्दू की माँ से पूछकर बात होगी। साधु ने कह दिया, ‘‘विवाह मेरे साथ मान जाओगे तो घोषणा कर दूँगा, नहीं तो इस विषय में भगवान की अनिच्छा बनी रहेगी और बिन्दू भी लोमा की लड़की लुग्गी की भाँति क्रिस्तानों के पास भाग जाएगी और फिर वे ही उसका विवाह करेंगे।’’

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