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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


इतना कह उसने बाँह से पकड़कर, राजकरणी को उठाया और उसको कस्तूरीलाल के सोने के कमरे में ले गई। वहाँ ले जा, पुष्पों से सुसज्जित पलंग पर उसको बैठाकर रजनी ने कहाँ, ‘‘भाभी रानी! झगड़ा नहीं करना।’’

राजकरणी ने मुस्कराकर कहा, ‘‘कल अपने भैया से पूछ लेना कि कैसे गत बनी थी।’’

इस समय कस्तूरी कमरे में गया, ‘‘हाय री दैया! तनिक तो धैर्य रखते भैया?’’

इतना कह वह भाग गई। कस्तूरी ने द्वार भीतर से बन्द कर लिया। बहू ने घूँघट उतारकर कहा, ‘‘तशरीफ रखिये।’’

‘‘ओह! यह पढ़े-लिखों के चिह्न हैं?’’

‘‘जी नहीं, बराबरी के लक्षण हैं। बैठिये।’’

कस्तूरीलाल बैठ गया। बहू का रंग गहरा गन्दमी था। नख-शिख साधारण थे। आभूषण पहन रखे थे। कपड़े भी बहुत बढ़िया थे। श्रृंगार बहुत ही सुघड़ता से किया हुआ था।

जब कुछ देर तक कस्तूरी अपनी बहू को देखता रहा तो उसने पूछ लिया, ‘‘क्या देखा?’’

‘‘देखा है लाला मनसारामजी की लड़की राजकरणी को।’’

कस्तूरी मन-ही-मन उसकी सुमित्रा से तुलना कर रहा था और वह उसकी तुलना में केवल चार आने दिखाई दी थी।

‘‘तो पसंद है लाला मनसारामजी की लड़की?’’

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