| उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
    ‘‘ठीक है, पूछ लेना।
      बहिन, तुम कह दोगी तो लड़की राज चढ़ जायगी और हम जीवन-भर तुम्हारे कृतज्ञ
      रहेंगे।’’
    
    उसी
      रात लाला गिरधारीलाल की पत्नी ने डरते-डरते अपने पति से इस विषय में बात
      की–‘‘आज लक्ष्मी की माँ सरस्वती आई थी और गजराज से उसके रिश्ते के लिए कह
      रही थी।’’
    
    ‘‘तो तुमने स्वीकार कर
      लिया है?’’
    
    ‘‘भला आपसे पूछे बिना मैं
      कैसे मान सकती थी!’’
    
    ‘‘क्यों, क्या तुम गजराज
      की माँ नहीं हो?’’
    
    ‘‘लक्ष्मी के पिता को
      पचपन रुपये मासिक वेतन मिलता है।’’
    
    ‘‘और मैं सोने-चाँदी का
      व्यापार करता हूँ, यही कहना चाहती हो न?’’
    
    परमेशरी
      का मुख इससे लाल हो गया। उसने कहा, ‘‘मैं तो आपके विषय में विचार कर रही
      हूँ। हम औरतों को तो केवल खाने-पहनने भर को चाहिए। बात तो आदमियों की है।
      उन्हें हर स्थान पर आना-जाना होता है।’’
    
    ‘‘देखो भाग्यवान! लड़की
      हमारे घर में आएगी तो धन-दौलत उसकी हो जाएगी और वह भी तब उतनी ही धनवान हो
      जाएगी, जितनी तुम हो। तब वह तुम्हारे बराबर हो जाएगी।’’
    
    ‘‘मैं तो यह कह रही थी कि
      लक्ष्मी का पिता आभूषणादि कुछ अधिक नहीं दे सकेगा।’’
    
    ‘‘तो क्या तुम्हारे पास
      उनकी कुछ कमी है?’’
    			
		  			
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