| उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
    ‘‘मैंने आपके पाँव को हाथ
      लगाकर कहा था, ‘‘क्षमा कर दो’, तो आप बोले, ‘नहीं करता।’
    
    ‘‘माँ ने आपको डाँटा था
      और आप रूठकर खाना छोड़कर उठ गये थे।
    
    ‘‘उसी
      सायं:काल आप मेरे लिए मिठाई का एक दोना लेकर आये थे और आपने माँ को कहा
      था, ‘माँ, उस एक गुलाबजामुन के बदले में बहू को पाँच दे दो, जिससे मैं उस
      पाप से मुक्त हो जाऊँ।’
    
    ‘‘माँ तो हँसकर दोहरी हो
      गई थीं।’’
    
    इस
      प्रकार गजराज का लक्ष्मी से विवाह हो गया। यद्यपि विवाह पर कुछ माँगा नहीं
      गया था, फिर भी सोमनाथ ने अपने समस्त जीवन की कमाई इस विवाह पर लगा दी।
      लक्ष्मी तथा गजराज के लिए दो-दो जोड़ी मूल्यवान वस्त्र तथा आभूषण दिये
      गये, और बारातियों का वह आदर-सम्मान किया गया कि वे कहने लगे, ‘‘सोमनाथ तो
      भीतर से काफी मजबूत निकला। काफी खिलाया-पिलाया है। साधारण स्थिति का
      व्यक्ति तो इस प्रकार नहीं कर पाता।’’
    
    तथ्य यही था कि सोमनाथ
      धनी
      व्यक्ति नहीं था। म्युनिसिपल कमेटी में वह चेचक के टीके लगाने वाले डॉक्टर
      के कम्पाउंडर के पद पर नियुक्त था। वेतन तो उसको पैंतीस रुपये मासिक ही
      मिलता था, परन्तु वह सायं:काल तीन-चार लड़कों को पढ़ाकर बीस रुपये तक,
      वेतन के अतिरिक्त, अर्जित कर लेता था। इससे जब कभी कोई उसकी पत्नी से उसके
      वेतन के विषय में प्रश्न करता तो वह पचपन रुपये बताती थी। इतने में
      निर्वाह होने के साथ-साथ दस-बारह रुपये कभी बच भी जाया करते थे, जो जमा
      होते रहते थे और यही जमा पूँजी उसने लक्ष्मी के विवाह में व्यय की थी।
    
    विवाह
      के अनन्तर व्यय का हिसाब लगाया गया तो पता चला कि जीवन की सब पूँजी व्यय
      करके भी दो सौ रुपया ऋण हो गया है। अभी हलवाई तथा चीनी-बेसन इत्यादि का
      रुपया देना अवशिष्ट था।
    			
		  			
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