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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

11 जून को नाना साहब के सिपाहियों ने पहला हमला बोला। व्हीलर का तोपखाना गोले बरसा रहा था। नाना साहब के सिपाही कानपुर में प्रवेश नहीं कर पाये। कानपुर की घेराबंदी से कुछ फायदा नहीं हो रहा था। नाना साहब ने अपना एक नौकर अंग्रेज छावनी में भेजा। नौकर ने बढ़ई का पहनावा पहनकर कानपुर में प्रवेश किया। किसी को शक नहीं हुआ। अंदर की स्थिति का जायजा लेकर वह नाना साहब के पास लौट आया।

‘‘श्रीमंत, छावनी में अनाज का संकट आ पड़ा है। दिन रात घेराबंदी के कारण लोग परेशान हो गये हैं। बीमारी बढ़ने से मृतकों की संख्या बढ़ रही है। सभी परेशान हैं।’’

यह खबर सुनकर नाना साहब ने करीबी दोस्त अजीमुल्ला के साथ विचार विमर्श किया। अजीमुल्ला ने सुझाव दिया, ‘‘हम घोषणा करेंगे कि जो अंग्रेज हथियार नीचे रख देगा, उसे इलाहाबाद भेज दिया जायेगा। फिर कानपुर हमारे हाथ आ जायेगा।’’

यह योजना नाना साहब को पसन्द आयी। उन्होंने इस सम्बन्ध में व्हीलर को एक पत्र भेज दिया। व्हीलर यह पत्र पढ़कर बिगड़ गया।

‘‘मैं और मेरे साथी यह शर्त कभी नहीं मानेंगे। हमें अब प्राणों की चिन्ता नहीं है।’’

बाकी अधिकारियों ने व्हीलर की बात मान ली। लेकिन मूर अकेला खामोश था। सबकी सुनने के बाद उसने व्हीलर को समझाया, ‘‘बारिश का मौसम शुरु हो गया है। इस हाल में शत्रु ने बाहर घेराबंदी की हुई है। हम उनके सामने ज्यादा दिन टिक नहीं पायेंगे। एक बार सुरक्षा दीवार ढह जायेगी। तो खंदक में पानी जम जायेगा। हमारा हथियार का गोदाम भीग सकता है। बारिश खत्म होने तक हमारे पास पर्याप्त अनाज भी उपलब्ध नहीं है।

मूर की बात व्हीलर टाल नहीं सका। दूसरे दिन मूर ने अजीमुल्ला से भेंट की। मूर ने शर्त रखी, ‘‘हम यह छावनी आपके हवाले कर देंगे। लेकिन छावनी छोड़ते समय हमारे पास बंदूकें रहेंगी। बीच राह में आत्मरक्षा के लिए बंदूकें जरूरी हैं। हमारे जख्मी सिपाही, औरतें, बच्चों को लिए बैलगाड़ियों का इंतजाम किया जाय। इसके अलावा, हमें पर्याप्त अनाज दीजिए ताकि हम इलाहाबाद तक आसानी से पहुंच सकें।

नाना साहब ने ये शर्तें मान लीं। व्हीलर ने अपने कुछ अधिकारियों को गंगा किनारे का जायजा लेने के लिए भेज दिया। सतीचौरा घाट पर नौकाएँ तैयार रखी थीं। कानपुर से इलाहाबाद की यात्रा सरल हो जायेगी, यह सोचकर छावनी खाली हो गयी। कानपुर के अंग्रेज नौका पर सवार हुए।

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