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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

एक दिन डरा हुआ विल्सन लॉरेंस से कहने लगा, ‘‘मैंने अभी एक देसी सिपाही की बात सुनी है। वह कह रहा था कि आनेवाले शनिवार यानी 30 मई को रात ठीक 9 बजे तोप की आवाज होगी। देसी सिपाही इस इशारे पर विद्रोह करेंगे।’’लॉरेंस को इस खबर पर विश्वास नहीं हुआ। उसने हंसकर कहा, ‘‘आजकल सभी जगहों पर अफवाहों की फसल बढ़ रही है।’’

30 मई को रात ठीक 9 बजे तोप की आवाज हुई। लॉरेंस अपने बंगलें के आंगन में टहल रहा था। वहां उसे दस-पंद्रह मिनटों तक कोई हलचल नजर नहीं आयी। उसने बंगले के भीतर प्रवेश किया। उसके हाथ में शराब का जाम था। वह विल्सन से बोला, ‘‘विल्सन, आपकी ‘दोस्त कंपनी’ वक्त की पाबंद नहीं है।’’ यहां उसने देसी सिपाहियों के संदर्भ में ‘दोस्त कंपनी’ शब्द का प्रयोग किया था। लॉरेंस बेफ्रिक होकर शराब पी रहा था। कुछ ही मिनटों में लॉरेंस को चिल्लाने की आवाज सुनायी पड़ी। इसका मतलब विल्सन की खबर सही निकली। उसने विल्सन से कहा, ‘‘मैं उन बदमाश लोगों को रेजिडेंसी के बाहर भगा देता हूँ। मुझे देखकर वे वहां से भाग जायेंगे। आप यहां रुकिये।’’

लॉरेंस घोड़े पर सवार होकर अंग्रेज सिपाहियों को आदेश दे रहा था, ‘‘देसी सिपाहियों को पीछे खदेड़ते समय ध्यान में रखें कि वे गांव में घुसने न पायें। अगर वे गांव में छिप गये तो गांववासी उनका साथ देंगे। अगर ऐसा हुआ तो स्थिति पूरी तरह बिगड़ जायेगी। आपको याद होगा कि मेरठ का क्या हाल हुआ है।’’

देसी सिपाही रेजिडेंसी के बंगलों को आग लगाते रहे। भोर होने की प्रतीक्षा में वे शहर के अंदर जाना भूल गये। पूरी रेजिडेंसी में आतंक छा गया था। सभी बागी सिपाही रेसकोर्स मैदान पर इकट्ठा हुए। वे आगे की योजना तय कर रहे थे। तभी वहां लॉरेंस अपनी पलटन सहित पहुंच गया। अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गोलीबारी शुरू करते ही बागी सिपाही पीछे हट गये। बागी सिपाहियों का साथ देने हेतु कुछ घुड़सवार वहां पहुंचे। वे घोड़ों पर जख्मी बागी सिपाहियों को लादकर मैदान से बाहर ले गये। लॉरेंस के हाथों से बागी सिपाही भाग निकले। उसके हाथ सिर्फ साठ सिपाही लग पाये।

लखनऊ की तीन पलटनों से सिर्फ पांच सौ सिपाही अलग रहे। बाकी सभी दो हजार पांच सौ सिपाहियों ने बगावत की थी। बगावत होते ही गांव में उपद्रव शुरू हो गये। अंग्रेज औरतों ने बच्चों को लेकर रेजिडेंसी में शरण ली। रेजीडेंसी के सामने तोपें रखी गयी थीं। रेजीडेंसी की तरफ जाने की हिम्मत बागी सिपाही नहीं कर पाये। लखनऊ के सिपाहियों ने बगावत की और आसपास के अनेक जागीरदारों के उनका साथ दिया। दस हजार सिपाहियों ने लखनऊ को घेर लिया था। लॉरेंस ने स्वयं पर संयम रखा। वह अपने साथियों को धीरज दे रहा था।

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