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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

आउट्रम का यह बड़प्पन देखकर हैवलॉक गद्गद हुआ। 19 सितंबर को हैवलॉक ने कानपुर छोड़ा। गंगा पार करके वह लखनऊ की तरफ रवाना हुआ। लखनऊ में उसके अंग्रेज साथी बदतर जीवन जी रहे थे। यह जानकर हैवलॉक बहुत दुखी हुआ। इसी दौरान उसे इंग्लिस से दूसरा खत मिला। हैवलॉक बशीरगंज के आगे निकल रहा था। मूसलाधार बारिश ने उसका रास्ता रोक लिया। सिपाहियों की चाल धीमी पड़ गयी।

दूसरे दिन बारिश रुक गयी। उसके सिपाही आलमबाग तक  पहुंच गये थे। अब वहां से लखनऊ सिर्फ दो मील की दूरी पर था। इसी जगह आउट्रम नील और हैमिल्टन—तीनों सेनानी इकट्ठा हुए। हैवलॉक ने लड़ाई की योजना समझायी। उसी वक्त हैवलॉक के घोड़े को किसी ने निशाना बना दिया। हैवलॉक पर अब तक सात हमले हो चुके थे और उसके सात घोड़े खत्म हुए थे। हैवलॉक दूसरे घोड़े पर सवार हुआ। आउट्रम ने ललकारते हुए कहा, ‘‘ईश्वर का नाम लेकर रेजिडेंसी की ओर चलिए !’’

गोलीबारी में अंग्रेज सिपाही नीचे लुढ़क रहे थे। हैवलॉक की पलटन जैसे-तैसे आगे बढ़ रही थी। हैवलॉक रेजिडेंसी के पास पहुंचा। तोपें और गोलियों से ध्वस्त रेजिडेंसी का दरवाजा बहुत दिनों के बाद खुला। रेजिडेंसी से आजाद हुए अंग्रेजों ने हैवलॉक का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। हैवलॉक बागी सिपाहियों का घेरा खत्म करने में सफल हुआ। इंग्लिस से हाथ मिलाकर उसने कहा, ‘‘यह सब ईश्वर की कृपा है।’’ 25 सितबंर 1857 की रात रेजिडेंसी में क्रिसमस की तरह उत्सव मनाया गया।

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