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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

तबाह लखनऊ


25 सितंबर को भागे हुए सिपाही कुछ ही दिनों में लखनऊ लौट आये। दिल्ली से भाग निकले बागी सिपाही भी लखनऊ के साथियों से मिल गये। लखनऊ के बागी सिपाहियों की संख्या एक लाख हो गयी। दूसरी तरफ आउट्रम के पास बहुत कम सिपाही थे। बागियों की रेजिडेंसी को चारों ओर से घेरा डालने की संभावना बढ़ गयी। बदलते हुए हालात को देखकर आउट्रम मन ही मन घबरा गया। शहर के अलग-अलग भागों में फैले जख्मी सिपाहियों को इकट्ठा किये बिना आउट्रम लखनऊ छोड़ नहीं सकता था। रेजिडेंसी में जमा भीड़ के कारण पड़ोस के मकानों पर भी कब्जा करना जरूरी हो गया था। पड़ोस की कोठी, फरहतबक्ष, चंतारी मंजिल आदि मकान उन्होंने अपने कब्जे में ले लिये।

बागी सिपाहियों की तोपें रेंजिडेंसी पर गोले बरसा रही थीं। जख्मी सिपाहियों की संख्या बढ़ रही थी। अस्पताल में दवाइयों की भी कमी हो गयी थी। जख्मी लोगों का इलाज करना मुश्किल हो गया था। ढाई सौ नागरिकों की जान अब किस तरह बचायें? आउट्रम चिंता में डूब गया। जख्मी सिपाहियों के निवास की व्यवस्था करने के लिए आउट्रम ने एक घिनौने उपाय का अवलंब लिया। रेजिडेंसी के पास वाली इमारतों में देसी सिपाहियों को रखा गया था। लखनऊ मुहिम के समय जो बागी सिपाही आउट्रम के हाथ लग गये थे, उनके नसीब में यह बंदी जीवन आ गया था। आउट्रम ने जॉर्ज ब्लेक को आदेश दिया, ‘‘सभी बंदी बागी सिपाहियों का कत्ल कर दो। हमारे जख्मी सिपाहियों की व्यवस्था उनके खाली स्थान पर की जायेगी।’’

ब्लेक बंदी सिपाहियों को हथकड़ी पहनाकर गोमती के किनारे ले गया। उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया, जो कोई बंदूक चलाकर निशाना साधना चाहता है, वह बागी सिपाहियों पर गोली चला दे।

फिर एक घिनौना हत्याकांड हुआ। गोमती का पानी बंदी सिपाहियों के खून से लाल हो गया। यह खबर गांव वालों को मालूम हो गयी। लखनऊ के लोगों का गुस्सा आसमान छूने लगा। गुस्से से पागल हुए लोगों ने अंग्रेजों का सिर तलवार से काटकर काठी पर लटका दिया।

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