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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

6 जनवरी को अंग्रेजों ने फतेहगढ़ पर विजय प्राप्त किया। कैंपबेल का हौसला बढ़ गया। वह आसपास के सभी इलाकों पर नियंत्रण स्थापित करना चाहता था। उसने इस मुहिम की जिम्मेदारी लेफ्टिनेट रॉबर्ट विंडाल्फ को सौंप दी। महत्वाकांक्षी विंडाल्फ यह सुनहरा मौका गंवाना नहीं चाहता था। वह मुख्य सेनापति की सहमति हासिल करना चाहता था। उसने गांव-गांव जाकर मकानों में आग लगाकर तबाही मचा दी तथा वहां के बेगुनाह लोगों को गोलियों से भूनने लगा।

माहौल दहशत से भर गया। गांववासी भाग रहे थे और विंडाल्फ के सिपाही उन पर गोलियां बरसा रहे थे। किसी ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की, तब विंडाल्फ कहने लगा, ‘‘ये सभी बदमाश, धोखेबाज लोग हैं। वे बागियों की हर संभव मदद करते हैं। इसलिए बागियों की तरह वे भी गुनहगार हैं। इस हरकत की सजा सख्त होनी ही चाहिए।’’

विंडाल्फ ने फतेहगढ़ से लेकर कानपुर तक फैले गांवों में आग लगा दी। गांव के बेगुनाह लोगों का कत्ल किया जा रहा था। शाही अवध की शान धूल में मिल रही थी। विंडाल्फ की इस बहादुरी की खबरें पढ़कर मुख्य सेनापति कैंपबेल खुश हुआ।

गंगा घाटी पर नियंत्रण पा लेने के बाद कैंपबेल रोहिलखंड पर कब्जा करना चाहता था। लॉर्ड कैनिंग को यह बात पसंद नहीं आयी। उसने मुख्य सेनापति को चेतावनी दी— ‘‘हमने अब तक अवध पर पूरी तरह कब्जा नहीं किया है। अवध के कई महत्त्वपूर्ण ठिकानों पर बागियों का नियंत्रण है। अगर हम रोहिलखंड की ओर जायेंगे तो अवध हमारे हाथों से निकल जायेगा। बागियों को मोरचा जमाने में सहूलियत हो जायेगी।

कैंपबेल ने फिर एक बार लखनऊ का रास्ता पकड़ा। फैजाबाद मौलवी की फौज आउट्रम पर हमला कर रही थी। आलमबाग की पलटन पर हमले बढ़ रहे थे। कैनिंग ने वहां पर कैंपबेल को भेज दिया। गवर्नर जनरल ने मान लिया था कि जब तक अवध की राजधानी पर कंपनी सरकार का झंडा नहीं फहराता है, तब तक बगावत खत्म नहीं होगी। कैंनिग ने कैंपबेल की सहायता के लिए कलकत्ता से ज्यादा टुकड़ियां भेज दीं।

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