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नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक)

चन्द्रहार (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8394

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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है


जालपा—नमस्ते।

(दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते करते हैं। रतन भी हाथ जोड़ती है। उसके मुख पर करुण भाव उभरता है।)

रतन—नमस्ते।

(कुछ दूर तीनों साथ– साथ बिना बोले चलते हैं। फिर द्वार पर आकर एक बार फिर नमस्कार करते हैं। रमानाथ और जालपा बाहर आ जाते हैं। रतन कई क्षण दोनों को जाते देखती है, फिर वह भी अंदर लौट पड़ती है। परदा यहीं गिरता है।)

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