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नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक)

चन्द्रहार (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8394

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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है


जालपा—कुछ नहीं, मैंने यों ही पूछा था। अच्छा, अब सो जाओ। चिंता मत करो।

रमानाथ—चिंता काहे की! नींद आ रही है।

(दोनों फिर झूठ– मूठ सोने का अभिनय करते हैं। जालपा को तो नींद आ जाती है, पर रमानाथ फिर उधेड़– बुन में लग जाता है। परदा गिरता है।)

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