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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


रतन–अच्छा कहिए, देखिए क्या कहता है।

दोनों कमरे के बाहर निकले, रमा ने जौहरी से कहा–तुम कल आठ बजे क्यों नहीं आते?

जौहरी–नहीं हूजूर, कल काशी में दो चार बड़े रईसों से मिलना है। आज के न जाने से बड़ी हानि हो जायेगी।

रतन–मेरे पास इस वक्त छः सौ रुपये हैं, आप हार दे जाइए, बाकी के रुपये काशी से लौटकर ले जाइएगा।

जौहरी–रुपये का कोई हर्ज न था, महीने दो महीने में ले लेता; लेकिन हम परदेशी लोगों का क्या ठिकाना, आज यहाँ हैं, कल वहाँ हैं, कौन, जाने यहाँ फिर कब आना हो। आप इस वक्त एक हजार दे दें, दो सौ फिर दे दीजिएगा।

रमानाथ–तो सौदा न होगा।

जौहरी–इसका अख्तियार आपको है; मगर इतना कहे देता हूँ कि ऐसा माल फिर न पाइएगा।

रमानाथ–रुपये होंगे तो माल बहुत मिल जायेगा।

जौहरी–कभी-कभी दाम रहने पर भी अच्छा माल नहीं मिलता।

यह कहकर जौहरी ने फिर हार को केस में रक्खा और इस तरह सन्दूक समेटने लगा, मानों वह एक क्षण भी न रुकेगा।

रतन का रोआँ-रोआँ काम बना हुआ था, मानो कोई कैदी अपनी किस्मत का फैसला सुनने को खड़ा हो, उसके हृदय की सारी ममता, ममता का सारा अनुराग, अनुराग की सारी अधीरता, उत्कंठा और चेष्टा उसी हार पर केन्द्रित हो रही थी, मानो उसके प्राण उसी हार के दामों में जा छिपे थे, मानों उसके जन्म-जन्मान्तरों की संचित अभिलाषा उसी हार पर मँडरा रही थी। जौहरी को सन्दूक बन्द करते देखकर वह जलविहीन मछली की भाँति तड़पने लगी। कभी वह सन्दूक खोलती कभी वह दराज खोलती; पर रुपये कहीं न मिले।

सहसा मोटर की आवाज सुनकर रतन ने फाटक की ओर देखा। वकील साहब चले आ रहे थे। वकील साहब ने मोटर बरामदे के सामने रोक दी और चबूतरे की तरफ चले। रतन ने तबूतरे के नीचे उतरकर कहा–आप तो नौ बजे आने को कह गये थे?

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