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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


रेवती यह सैर देख रही थी और हीरामन सागर की सीढ़ियों पर और लड़कियों के साथ गुड़ियाँ पीटने में लगा हुआ था। सीढ़ियों पर काई लगी हुई थी। अचानक उसका पाँव फिसला तो पानी में जा पड़ा। रेवती चीख मारकर दौड़ी और सर पीटने लगी। दम के दम में वहाँ मर्दो और औरतों का ठट लग गया मगर यह किसी की इन्सानियत तक़ाजा न करती थी कि पानी में जाकर मुमकिन हो तो बच्चे की जान बचाये। संवारे हुए बाल न बिखर जायँगे! धुली हुई धोती न भींग जाएगी! कितने ही मर्दों के दिलों में यह मर्दाना ख़याल आ रहे थे। दस मिनट गुज़रे गये। मगर कोई आदमी हिम्मत करता नज़र न आया। गरीब रेवती पछाड़ें खा रही थीं अचानक उधर से एक आदमी अपने घोड़े पर सवार चला जाता था। यह भीड़ देखकर उतर पड़ा और एक तमाशाई से पूछा—यह कैसी भीड़ है? तमाशाई ने जवाब दिया—एक लड़का डूब गया है।

मुसाफिर—कहाँ?

तमाशाई—जहाँ वह औरत खड़ी रो रही है।

मुसाफिर ने फौरन अपनी गाढ़े की मिर्ज़ई उतारी और धोती कसकर पानी में कूद पड़ा। चारों तरफ़ सन्नाटा छा गया। लोग हैरान थे कि यह आदमी कौन है। उसने पहला गोता लगाया, लड़के की टोपी मिली। दूसरा गोता लगाया तो उसकी छड़ी हाथ में लगी और तीसरे गोते के बाद जब ऊपर आया तो लड़का उसकी गो़द में था। तमाशाइयों ने ज़ोर से वाह-वाह का नारा बुलन्द किया। माँ दौड़कर बच्चे से लिपट गयी। इसी बीच पण्डित चिन्तामणि के और कई मित्र आ पहुँचे और लड़के को होश में लाने की फ़िक्र करने लगे। आध घण्टे में लड़के ने आँखें खोल दीं। लोगों की जान में जान आई। डाक्टर साहब ने कहा—अगर लड़का दो मिनट पानी में रहता तो बचना असम्भव था। मगर जब लोग अपने गुमनाम भलाई करने वाले को ढूँढ़ने लगे तो उसका कहीं पता न था। चारों तरफ़ आदमी दौड़ाये, सारा मेला छान मारा, मगर वह नजर न आया।

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