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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


तख़त सिंह के पास एक गाय थी। वह अब दिन के दिन उसे चराया करता। उसकी ज़िन्दगी का अब यही एक सहारा था। उसके उपले और दूध बेचकर गु़जर-बसर करता। कभी-कभी फ़ाक़े करने पड़ जाते। यह सब मुसीबतें उसने झेलीं मगर अपनी कंगाली का रोना रोने के लिए एक दिन भी हीरामणि के पास न गया। हीरामणि ने उसे नीचा दिखाना चाहा था मगर खु़द उसे ही नीचा देखना पड़ा, जीतने पर भी उसे हार हुई, पुराने लोहे को अपने नीच हठ की आँच से न झुका सका।

एक दिन रेवती ने कहा—बेटा, तुमने ग़रीब को सताया, अच्छा न किया।

हीरामणि ने तेज़ होकर ज़वाब दिया—वह ग़रीब नहीं है। उसका घमण्ड मैं तोड़ दूँगा।

दौलत के नशे में मतवाला ज़मींदार वह चीज़ तोड़ने की फ़िक्र में था जो कहीं थी ही नहीं। जैसे नासमझ बच्चा अपनी परछाईं से लड़ने लगता है।

साल भर तख़तसिंह ने ज्यों-त्यों करके काटा। फिर बरसात आयी। उसका घर छाया न गया था। कई दिन तक मूसलाधार मेंह बरसा तो मकान का एक हिस्सा गिर पड़ा। गाय वहाँ बँधी हुई थी, दबकर मर गयी। तख़तसिंह को भी सख़्त चोट आयी। उसी दिन से बुखार आना शुरू हुआ। दवा–दारू कौन करता, रोजी़ का सहारा था वह भी टूटा। ज़ालिम बेदर्द मुसीबत ने कुचल डाला। सारा मकान पानी से भरा हुआ, घर में अनाज का एक दाना नहीं, अँधेरे में पड़ा हुआ कराह रहा था कि रेवती उसके घर गयी। तख़तसिंह ने आँखें खोलीं और पूछा कौन है?

ठकुराइन—रेवती रानी हैं।

तख़तसिंह—मेरे धन्यभाग, मुझ पर बड़ी दया की।

रेवती ने लज्जित होकर कहा—ठकुराइन, ईश्वर जानता है, मैं अपने बेटे से हैरान हूँ। तुम्हें जो तकलीफ़ हो मुझसे कहो। तुम्हारे ऊपर ऐसी आफ़त पड़ गयी और हमसे ख़बर तक न की?

यह कहकर रेवती ने रुपयों की एक छोटी-सी पोटली ठकुराइन के सामने रख दी।

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