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कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
भोला को मरे एक महीना गुज़र चुका था। संध्या हो गई थी। पन्ना इसी चिन्ता में पड़ी हुई थी कि सहसा उसे खयाल आया, लड़के घर में नहीं हैं। यह बैलों के लौटने की बेला है, कहीं कोई लड़का उनके नीचे न आ जाय। अब द्वार पर कौन है, जो उनकी देख-भाल करेगा। रग्घु को मेरे लड़के फूटी आँखों नहीं भाते। कभी हँस कर नहीं बोलता। घर से बाहर निकली, तो देखा रग्घू सामने झोंपड़े में बैठा ऊख की गँड़ेरियाँ बना रहा है, लड़के उसे घेरे खड़े हैं और छोटी लड़की गर्दन में हाथ डाले उसकी पीठ पर सवार होने की चेष्टा कर रही है। पन्ना को अपनी आँखों पर विश्वास न आया। आज तो यह नयी बात है! शायद दुनिया को दिखाता है कि मैं अपने भाइयों को कितना चाहता हूँ और मन में छुरी रक्खी हुई है। घात मिले तो जान ही ले ले। काला साँप है, काला साँप। कठोर स्वर में बोली–तुम सबके सब वहाँ क्या करते हो? घर में आओ, साँझ की बेला है, गोरू आते होंगे।
रग्घू ने विनीत नेत्रों से देख कर कहा–मैं तो हूँ ही काकी, डर किस बात का है?
बड़ा लड़का केदार बोला–काकी, रग्घू दादा ने हमारे लिए दो गाड़ियाँ बना दी हैं। यह देख, एक पर हम और खुन्नू बैठेंगे, दूसरी पर लछमन और झुनियाँ। दादा दोनों गाड़ियाँ खींचेंगे।
यह कह कर वह कोने से छोटी-छोटी गाड़ियाँ निकाल लाया। चार-चार पहिये लगे थे, बैठने के लिए तख्ते और रोक के लिए दोनों तरफ बाजू थे।
पन्ना ने आश्चर्य से पूछा–ये गाड़ियाँ किसने बनायीं?
केदार ने चिढ़कर कहा–रग्घू दादा ने बनायी हैं, और किसने। भगत के घर से बसूला और रुखानी माँग लाये और चटपट बना दी। खूब दौड़ती हैं काकी। बैठ खुन्नू, मैं खींचूँ।
खुन्नू गाड़ी में बैठ गया। केदार खींचने लगा। चर-चर का शोर हुआ, मानो गाड़ी भी इस खेल में लड़के के साथ शरीक है।
लछमन ने दूसरी गाड़ी पर बैठकर कहा–दादा खींचो।
रग्घू ने झुनिया को भी गाड़ी में बिठा दिया और गाड़ी खींचता हुआ दौड़ा। तीनों लड़के तालियाँ बजाने लगे। पन्ना चकित नेत्रों से यह दृश्य देख रही थी और सोच रही थी कि यह वही रग्घू है या और।
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