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कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
रग्घू–मुझे चिढ़ा मत। तेरे पीछे मैं भी बदनाम हो रहा हूँ। जब तू किसी की होकर नहीं रहना चाहती, तो दूसरे को क्या गरज़ है, जो मेरी खुशामद करे। जाकर काकी से पूछ, लड़के आम चुनने गये हैं, उन्हें पकड़ लाऊँ?
मुलिया अँगूठा दिखाकर बोली–यह जाता है। तुम्हें सौ बार गरज हो, जाकर पूछो।
इतने में पन्ना भी भीतर से निकल आयी। रग्घू ने पूछा–लड़के बगीचे में चले गये काकी, लू चल रही है।
पन्ना–अब उनका कौन पुछत्तर है। बगीचे में जायँ, पेड़ पर चढ़ें, पानी में डूबें। मैं अकेली क्या-क्या करूँ?
रग्घू–जाकर पकड़ लाऊँ!
पन्ना–जब तुम्हें अपने मन से नहीं जाना है तो फिर मैं जाने को क्यों कहूँ? तुम्हें रोकना होता, तो रोक न देते? तुम्हारे सामने ही तो गये होंगे।
पन्ना की बात पूरी भी न हुई थी कि रग्घू ने नारियल कोने में रख दिया और बाग की तरफ चला।
रग्घू लड़कों को लेकर बाग से लौटा तो देखा मुलिया अभी तक झोंपड़े में खड़ी है। बोला–तू जाकर खा क्यों नहीं लेती। मुझे तो इस बेला भूख नहीं है।
मुलिया ऐंठकर बोली–हाँ भूख क्यों लगेगी। भाइयों ने खाया, वह तुम्हारे पेट में पहुँच ही गया होगा।
रग्घू ने दाँत पीसकर कहा–मुझे जला मत मुलिया, नहीं अच्छा न होगा। खाना कहीं भागा नहीं जाता। एक बेला न खाऊँगा, तो मर न जाऊँगा। क्या तू समझती है, घर में आज कोई छोटी बात हो गयी है? तूने घर में चूल्हा नहीं जलाया, मेरे कलेजे में आग लगायी है। मुझे घमंड था कि और चाहे कुछ हो जाय, पर मेरे घर में फूट का रोग न आने पावेगा, पर तूने मेरा घमंड चूर कर दिया। परालब्ध की बात है।
मुलिया तिनककर बोली–सारा मोह-छोह तुम्हीं को है कि और किसी को है? मैं तो किसी को तुम्हारी तरह बिसूरते नहीं देखती।
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