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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


मुहब्बत की सरगर्मियां नतीजे की तरफ़ से बिलकुल बेख़बर होती हैं। नानकचन्द जिस वक़्त बग्घी में ललिता के साथ बैठा तो उसे इसके सिवाय और कोई ख़याल न था कि एक युवती मेरे बगल में बैठी है, जिसके दिल का मैं मालिक हूँ। उसी धुन में वह मस्त था। बदनामी का डर, कानून का खटका, जीविका के साधन, उन समस्याओं पर विचार करने की उसे उस वक़्त फुरसत न थी। हाँ, उसने कश्मीर का इरादा छोड़ दिया। कलकत्ते जा पहुँचा। किफ़ायतशारी का सबक न पढ़ा था। जो कुछ जमा-जथा थी, दो महीनों में खर्च हो गयी। ललिता के गहनों पर नौबत आयी। लेकिन नानकचन्द में इतनी शराफ़त बाकी थी। दिल मज़बूत करके बाप को ख़त लिखा, मुहब्बत को गालियाँ दीं और विश्वास दिलाया कि अब आपके पैर चूमने के लिए जी बेक़रार है, कुछ ख़र्च भेजिए। लाला साहब ने ख़त पढ़ा, तसकीन हो गयी कि चलो ज़िन्दा है खैरियत से है। धूम-धाम से सत्यनारायण की कथा सुनी। रुपया रवाना कर दिया, लेकिन जवाब में लिखा—खैर, जो कुछ तुम्हारी किस्मत में था वह हुआ। अभी इधर आने का इरादा मत करो। बहुत बदनाम हो रहे हो। तुम्हारी वजह से मुझे भी बिरादरी से नाता तोड़ना पड़ेगा। इस तूफ़ान को उतर जाने दो। तुम्हें खर्च की तकलीफ़ न होगी। मगर इस औरत की बांह पकड़ी है तो उसका निबाह करना, उसे अपनी ब्याहता स्त्री समझो।

नानकचन्द के दिल पर से चिन्ता का बोझ उतर गया। बनारस से माहवार वजीफ़ा मिलने लगा। इधर ललिता की कोशिश ने भी कुछ दिल को खींचा और गो शराब की लत न छूटी और हफ़्ते में दो दिन जरूर थियेटर देखने जाता, तो भी तबियत में स्थिरता और कुछ संयम आ चला था। इस तरह कलकत्ते में उसने तीन साल काटे। इसी बीच उसे एक प्यारी लड़की के बाप बनने का सौभाग्य हुआ, जिसका नाम उसने कमला रक्खा।

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