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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


लाला नानकचन्द की शादी एक रईस घराने में हुई और तब धीरे-धीरे फिर वही पुराने उठने-बैठनेवाले आने शुरु हुए। फिर वही मजलिसें जमीं और फिर वही साग़र-ओ-मीना के दौर चलने लगे। संयम का कमजोर अहाता इन विषय-वासना के बटमारों को न रोक सका। हाँ, अब इस पीने-पिलाने में कुछ परदा रखा जाता है और ऊपर से थोड़ी-सी गम्भीरता बनाये रखी जाती है। साल भर इसी बहार में गुज़रा। नवेली बहू घर में कुढ़-कुढ़कर मर गई। तपेदिक ने उसका काम तमाम कर दिया। तब दूसरी शादी हुई। मगर इस स्त्री में नानकचन्द की सौन्दर्य-प्रेमी आँखों के लिए कोई आकर्षण न था। इसका भी वही हाल हुआ। कभी बिना रोये कौर मुँह में नही दिया। तीन साल में चल बसी। तब तीसरी शादी हुई। यह औरत बहुत सुन्दर थी, अच्छे आभूषणों से सुसज्जित थी। उसने नानकचन्द के दिल में जगह कर ली। एक बच्चा भी पैदा हुआ और नानकचन्द गार्हस्थिक आनंदों से परिचित होने लगा, दुनिया के नाते-रिश्ते अपनी तरफ़ खींचने लगे। मगर प्लेग के एक ही हमले ने सारे मंसूबे धूल में मिला दिये। पतिप्राणा स्त्री मरी, तीन बरस का प्यारा लड़का हाथ से गया और दिल पर ऐसा दाग छोड़ गया जिसका कोई मरहम न था। उच्छृंखलता भी चली गई, ऐयाशी का भी खात्मा हुआ। दिल पर रंजोग़म छा गया और तबियत संसार से विरक्त हो गयी।

जीवन की दुर्घटनाओं में अकसर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुआ करते हैं। इन सदमों ने नानकचन्द के दिल में मरे हुए इन्सान को जगा दिया। जब वह निराशा के यातनापूर्ण अकेलपन में पड़ा हुआ इन घटनाओं को याद करता तो उसका दिल रोने लगता और ऐसा मालूम होता कि ईश्वर ने मुझे मेरे पापों की सजा दी है। धीरे-धीरे यह ख़्याल उसके दिल में मजबूत हो गया—उफ़ मैंने उस मासूम औरत पर कैसा जुल्म किया। कैसी बेरहमी की! यह उसी का दण्ड है। यह सोचते-सोचते ललिता की मासूम तस्वीर उसकी आँखों के सामने खड़ी हो जाती और प्यारी मुखड़ेवाली कमला अपने मरे हुए सौतेल भाई के साथ उसकी तरफ़ प्यार से दौड़ती हुई दिखाई देती। इस लम्बी अवधि में नानकचन्द को ललिता की याद तो कई बार आयी थी मगर भोग-विलास पीने-पिलाने की उन कैफियातों ने कभी उस ख़याल को जमने न दिया। एक धुँधला-सा सपना दिखाई दिया और बिखर गया। मालूम नहीं दोनों मर गयीं या जिन्दा हैं। अफ़सोस! ऐसी बेकसी की हालत में छोड़कर मैंने उनकी सुध तक न ली। उस नेकनामी पर धिक्कार है जिसके लिए ऐसी निर्दयता की कीमत देनी पड़े। यह ख़याल उसके दिल पर इस बुरी तरह बैठा कि एक रोज़ वह कलकत्ता के लिए रवाना हो गया। सुबह का वक़्त था। वह कलकत्ते पहुँचा और अपने उसी पुराने घर को चला। सारा शहर कुछ से कुछ हो गया था। बहुत तलाश के बाद उसे अपना पुराना घर नज़र आया। उसके दिल में जोर से धड़कन होने लगी और भावनाओं में हलचल पैदा हो गयी। उसने एक पड़ोसी से पूछा—इस मकान में कौन रहता है?

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