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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


एक रोज़ मलिका शेर अफ़गान ने मसऊद को दरबार में बुलाया और यह बोली—ऐ घमण्डी नौजवान! खुदा का शुक्र है कि तू मेरी बर्छी की चोट से अच्छा हो गया, अब मेरे इलाके से जा, तेरी गुस्ताखी माफ़ करती हूँ। मगर आइन्दा मेरे इलाक़े में शिकार के लिए आने की हिम्मत न करना। फ़िलहाल ताकीद के तौर पर तेरी तलवार छीन ली जायेगी ताकि तू घमंड के नशे में चूर होकर फिर इधर क़दम बढ़ाने की हिम्मत न करे।

मसऊद ने नंगी तलवार मियान से खींच ली और कड़ककर बोला—जब तक मेरे दम में दम है, कोई यह तलवार मुझसे नहीं ले जा सकता। यह सुनते ही एक देव जैसा लम्बा-तड़ंगा हैकल पहलवान ललकार कर बढ़ा और मसऊद ने वार खाली दिया और सम्हलकर तेग़े का वार किया तो पहलवान की गर्दन की पट्टी तक बाक़ी न रही। यह कैफ़ियत देखते ही मलिका की आँखों से चिनगारियाँ उड़ने लगीं। भयानक गुस्से के स्वर में बोली—ख़बरदार, यह शख़्स यहाँ से जिन्दा न जाने पावे। चारों तरफ़ से आज़माये हुए मजबूत सिपाही पिल पड़े और मसऊद पर तलवारों और बर्छियों की बौछार पड़ने लगी।

मसऊद का जिस्म जख्मों से छलनी हो गया। खून के फव्वारे जारी थे और खून की प्यासी तलवारें ज़बान खोले बार-बार उसकी तरफ़ लपकती थीं और उसका खून चाटकर अपनी प्यास बुझा लेती थीं। कितनी ही तलवारें उसकी ढाल से टकराकर टूट गयीं, कितने ही बहादुर सिपाही जख़्मी होकर तड़पने लगे और कितने ही उस दुनिया को सिधारे। मगर मसऊद के हाथ में वह आबदार शमशीर ज्यों-की-त्यों बिजली की तरह कौंधती और सुथराव करती रही। यहाँ तक कि इस फ़न के कमाल को समझने वाली मलिका ने खुद उसकी तारीफ़ का नारा बुलन्द किया और उसके तेगे को चूमकर बोली—मसऊद तू बहादुरी के समुन्दर का मगर है। शेरों के शिकार में वक़्त बर्बाद मत कर। दुनिया में शिकार के अलावा और भी ऐसे मौके हैं जहाँ तू अपने आबदार तेग़ का जौहर दिखा सकता है। जा और मुल्कोक़ौम की ख़िदमत कर। सैरो शिकार हम जैसी औरतों के लिए छोड़ दे।

मसऊद के दिल ने गुदगुदाया, प्यार की बानी ज़बान तक आयी मगर बाहर निकल न सकी और उसी वक़्त वह अपने दिल में किसी की पलकों की टीस लिये हुए तीन हफ़्तों के बाद अपनी बेक़रार माँ के क़दमों पर जा गिरा।

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