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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


लेकिन साईंदयाल का यह तपस्वियों जैसा धैर्य और ईश्वरेच्छा पर भरोसा अपनी आँखों से देखने पर भी मेरे दिल में संदेह बाक़ी थे। मुमकिन है, जब तक चोट ताज़ी है सब्र का बाँध कायम रहे। लेकिन उसकी बुनियादें हिल गयी हैं, उसमें दरारें पड़ गई हैं। वह अब ज़्यादा देर तक दुख और शोक की जहरों का मुकाबला नहीं कर सकता।

क्या संसार की कोई दुर्घटना इतनी हृदयद्रावक, इतनी निर्मम, इतनी कठोर हो सकती है! संतोष और दृढ़ता और धैर्य और ईश्वर पर भरोसा यह सब उस आँधी के समान घास-फूस से ज़्यादा नहीं। धार्मिक विश्वास तो क्या, अध्यात्म तक उसके सामने सिर झुका देता है। उसके झोंके आस्था और निष्ठा की जड़ें हिला देते हैं।

लेकिन मेरा अनुमान ग़लत निकला। साईंदयाल ने धीरज को हाथ से न जाने दिया। वह बदस्तूर ज़िन्दगी के कामों में लग गया। दोस्तों की मुलाकातें और नदी के किनारे की सैर और तफ़रीह और मेलों की चहल-पहल, इन दिलचस्पियों में उसके दिल को खींचने की ताक़त अब भी बाक़ी थी। मैं उसकी एक-एक क्रिया को, एक-एक बात को गौर से देखता और पढ़ता। मैंने दोस्ती के नियम-क़ायदों को भुलाकर उसे उस हालत में देखा जहाँ उसके विचारों के सिवा और कोई न था। लेकिन उस हालत में भी उसके चेहरे पर वही पुरूषोचित धैर्य था और शिकवे-शिकायत का एक शब्द भी उसकी ज़बान पर नहीं आया।

इसी बीच मेरी छोटी लड़की चन्द्रमुखी निमोनिया की भेंट चढ़ गयी। दिन के धंधे से फुरसत पाकर जब मैं घर पर आता और उसे प्यार से गोद में उठा लेता तो मेरे हृदय को जो आनन्द और आत्मिक शक्ति मिलती थी, उसे शब्दों में नहीं व्यक्त कर सकता। उसकी अदाएँ सिर्फ़ दिल को लुभानेवाली नहीं ग़म को भुलानेवाली हैं। जिस वक़्त वह हुमककर मेरी गोद में आती तो मुझे तीनों लोक की संपत्ति मिल जाती थी। उसकी शरारतें कितनी मनमोहक थीं। अब हुक्के में मज़ा नहीं रहा, कोई चिलम को गिरानेवाला नहीं! खाने में मजा नहीं आता, कोई थाली के पास बैठा हुआ उस पर हमला करनेवाला नहीं! मैं उसकी लाश को गोद में लिये बिलख-बिलखकर रो रहा था। यही जी चाहता था कि अपनी ज़िन्दगी का ख़त्मा कर दूँ। यकायक मैंने साईंदयाल को आते देखा। मैंने फौरन आँसू पोंछ डाले और उस नन्हीं-सी जान को ज़मीन पर लिटाकर बाहर निकल आया। उस धैर्य और संतोष के देवता ने मेरी तरफ़ संवेदना की आँखों से देखा और मेरे गले से लिपटकर रोने लगा। मैंने कभी उसे इस तरह चीखें मारकर रोते नहीं देखा। रोते-रोते उसकी हिचकियाँ बंध गयीं, बेचैनी से बेसुध और बेहार हो गया। यह वही आदमी है जिसका इकलौता बेटा मरा और माथे पर बल नहीं आया। यह कायापलट क्यों?

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