लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


हरिदास फटकार का कोई जवाब न देता क्योंकि बात से बात बढ़ती है। उसकी चुप्पी से लाला साहब को यकीन हो जाता कि कारखाना तबाह हो गया। एक रोज देवकी ने हरिदास से कहा—अभी कितने दिन और इन बातों को लालाजी से छिपाओगे?

हरिदास ने जवाब दिया—मैं तो चाहता हूँ कि नयी मशीन का रुपया अदा हो जाय तो उन्हें ले जाकर सब कुछ दिखा दूँ। तब तक डाक्टर साहब की हिदायत के अनुसार तीन महीने पूरे भी हो जायेंगे।

देवकी—लेकिन इस छिपाने से क्या फायदा, जब वे आठों पहर इसी की रट लगाये रहते हैं। इससे तो चिन्ता और बढ़ती ही है, कम नहीं होती। इससे तो यही अच्छा है, कि उनसे सब कुछ कह दिया जाए।

हरिदास—मेरे कहने का तो उन्हें यकीन आ चुका। हाँ, दीनानाथ कहें तो शायद यकीन हो।

देवकी—अच्छा तो कल दीनानाथ को यहाँ भेज दो। लालाजी उसे देखते ही खुद बुला लेंगे, तुम्हें इस रोज-रोज की डाँट-फटकर से तो छुट्टी मिल जाएगी।

हरिदास—अब मुझे इन फटकारों का ज़रा भी दुख नहीं होता। मेरी मेहनत और योग्यता का नतीजा आँखों के सामने मौजूद है। जब मैंने कारखाना अपने हाथ में लिया था, आमदनी और ख़र्च का मीज़ान मुश्किल से बैठता था। आज पाँच सौ नफा है। तीसरा महीना खत्म होनेवाला है और मैं मशीन की आधी कीमत अदा कर चुका। शायद अगले दो महीने में पूरी कीमत अदा हो जायेगी। उस वक़्त से कारखाने का खर्च तिगुने से ज़्यादा है लेकिन आमदनी पाँच गुनी हो गयी है। हजरत देखेंगे तो आँखें खुल जाएँगी। कहाँ हाते में उल्लू बोलते थे। एक मेज़ पर बैठे आप ऊँघा करते थे, एक पर दीनानाथ कान कुरेदा करता था। मिस्त्री और फायरमैन ताश खेलते थे। बस, दो-चार घण्टे चक्की चल जाती थी। अब दम मारने की फुरसत नहीं है। सारी ज़िन्दगी में जो कुछ न कर सके वह मैंने तीन महीने में करके दिखा दिया। इसी तजुर्बे और कार्रवाई पर आपको इतना घमण्ड था। जितना काम वह एक महीने में करते थे उतना मैं रोज़ कर डालता हूँ। देवकी ने भर्त्सनापूर्ण नेत्रों से देखकर कहा—अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना कोई तुमसे सीख ले! जिस तरह माँ अपने बेटे को हमेशा दुबला ही समझती है, उसी तरह बाप बेटे को हमेशा नादान समझा करता है। यह उनकी ममता है, बुरा मानने की बात नहीं है। हरिदास ने लज्जित होकर सर झुका लिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book