लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


जलसे की तैयारियाँ बड़े पैमाने पर की जाने लगीं। शाही नृत्यशाला की सजावट होने लगी। पटना, बनारस, लखनऊ, ग्वालियर, दिल्ली और पूना की नामी वेश्याओं को सन्देश भेजे गये। वृन्दा को भी निमन्त्रण मिला। आज एक मुद्दत के बाद उसके चेहरे पर मुस्कराहट की झलक दिखायी दी।

जलसे की तारीख निश्चित हो गयी। लाहौर की सड़कों पर रंग-बिरंगी झंडियाँ लहराने लगीं। चारों तरफ़ से नवाब और राजे बड़ी शान के साथ सज-धजकर आने लगे। होशियार फ़र्राशों ने नृत्यशाला को इतने सुन्दर ढंग से सजाया था कि उसे देखकर लगता था विलास का विश्रामस्थल है।

शाम के वक़्त शाही दरबार जमा। महाराजा साहब सुनहरे राजसिंहासन पर शोभायमान हुए। नवाब और राजे, अमीर, और रईस, हाथी-घोड़ों पर सवार अपनी सज-धज दिखाते हुए जुलूस बनाकर महाराज की क़दमबोसी को चले। सड़क पर दोनों तरफ़ तमाशाइयों का ठट लगा था। खुशी का रंगों से भी कोई गहरा सम्बन्ध है। जिधर आँख उठती थी रंग ही रंग दिखायी देते थे। ऐसा मालूम होता था कि कोई उमड़ी हुई नदी रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियों से बहती चली आती है।

अपनी खुशी के जोश में कभी-कभी लोग अभद्रता भी कर बैठते थे। एक पंडित जी मिर्ज़ई पहने सर पर गोल टोपी रक्खे तमाशा देखने में लगे थे। किसी मनचले ने उनकी तोंद पर एक चमगादड़ चिमटा दी। पंडित जी बेतहाशा तोंद मटकाते हुए भागे। बड़ा कहकहा पड़ा। एक और मौलवी साहब नीची अचकन पहने एक दुकान पर खड़े थे। दुकानदार ने कहा—मौलवी साहब, आपको खड़े-खड़े तकलीफ़ होती है, यह कुर्सी रक्खी हुई है, बैठ जाइए। मौलवी साहब बहुत खुश हुए, सोचने लगे कि शायद मेरे रूप-रंग से रोब झलक रहा है वर्ना दुकानदार कुर्सी क्यों देता? दुकानदार आदमियों के बड़े पारखी होते हैं। हजारों आदमी खड़े हैं, मगर उसने किसी से बैठने की प्रार्थना न की। मौलवी साहब मुस्कराते हुए कुर्सी पर बैठे, मगर बैठते ही पीछे की तरफ़ लुढ़के और नीचे बहती हुई नाली में गिर पड़े। सारे कपड़े लथपथ हो गये। दुकानदार को हजारों खरी-खोटी सुनायी। बड़ा कहकहा पड़ा। कुर्सी तीन ही टाँग की थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book