कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
कोई-कोई साहब हमीं से नियारियापन करते हैं। चालीस साल से हुजूर, यही काम कर रहा हूँ। सवारी को देखा और भांप गए कि क्या चाहते हैं। पैसा मिला और हमारी घोड़ी के पर निकल आये। एक साहब ने बड़े तूम-तड़ाक के बाद घंटों के हिसाब से तांगा तय किया और वह भी सरकारी रेट से कम। आप देखे कि चुंगी ही ने रेट मुकर्रर करते वक़्त जान निकाल ली है लेकिन कुछ लोग बग़ैर तिलों के तेल निकालना चाहते है। ख़ैर मैंने भी बेकारी में कम रेट ही मान लिया। फिर जनाब थोड़ी दूर चलकर हमारा तांगा भी जनाज़े की चाल चलने लगा। वह कह रहे हैं कि भाई ज़रा तेज़ चलो, मैं कहता हूँ कि रोज़े का दिन है, घोड़ी का दम न टूटे। तब वह फरमाते हैं, हमें क्या तुम्हारा ही घंटा देर में होगा। सरकार, मुझे तो इसमें खुशी है आप ही सवार रहें और गुलाम आपको फिराता रहे।
लाट साहब के दफ़्तर में एक बड़े बाबू थे। कटरे में रहते थे। खुदा झूठ न बुलवाये उनकी कमर तीन गज़ से कम न होगी। उनको देखकर इक्के-तांगेवाले आगे हट जाते थे। कितने ही इक्के वह तोड़ चुके थे। इतने भारी होने पर भी इस सफ़ाई से कूदते थे कि खुद कभी चोट न खाई। यह गुलाम ही कि हिम्मत थी कि उनको ले जाता था। खुदा उनको खुश रक्खे, मज़दूरी भी अच्छी देते थे। एक बार मैं ईंदू का इक्का लिये जा रहा था, बाबू मिल गये और कहा कि दफ्तर तक पहुँचा दोगे? आज देर हो गई है, तुम्हारे घोड़े में सिर्फ़ ढाचां ही रह गया है। मैंने जवाब दिया, यह मेरा घोड़ा नहीं है, हुजूर तो डबल मज़दूरी देते हैं, हुकुम दे तो दो इक्के एक साथ बांध लू और फिर चलूँ।
और सुनिए, एक सेठजी ने इक्का भाड़ा किया। सब्जी मंडी से सब्जी वगैरह ली और भगाते हुए स्टेशन आए। इनाम की लालच में मैं घोड़ी पीटता लाया। खुदा जानता है, उस रोज़ जानवर पर बड़ी मार पड़ी। मेरे हाथ दर्द करने लगे। रेल का वक़्त सचमुच बहुत ही तंग था। स्टेशन पर पहुँचे तो मेरे लिए वही चवन्नी। मैं बोला, यह क्या? सेठ जी कहते हैं, तुम्हारा भाड़ा तख्ती दिखाओ। मैंने कहा देर करें आप और मेरा घोड़ा मुफ्त पीटा जाय। सेठजी जवाब देते हैं कि भई तुम भी तो जल्दी फरागत पा गए और चोट तुम्हारे तो लगी नहीं। मैंने कहा कि महाराज, इस जानवर पर तो दया किजिए। तब सेठजी ढीले पड़े और कहा, हाँ इस गरीब का ज़रूर लिहाज़ होना चाहिए और अपनी टोकरी से चार पत्ते गोभी के निकाले और घोड़ी को खिलाकर चल दिए। यह भी शायद मज़ाक होगा मगर मैं गरीब मुफ्त मरा। उस वक़्त से घोड़ी का हाज़मा बदल गया।
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