कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
काटन– नही, नहीं आप हमारा दोस्त है।
ख़ां– हुजूर चाहे मेरे को आफ़ताब बना दें, पर मैं तो अपनी हकीकत समझता हूँ। बंदा उन लोगों में नहीं है जो हुजूर के करम से चार हरफ पढ़कर जमीन पर पाँव नहीं रखते और हुजूर लोगों की बराबरी करने लगते हैं।
काटन– ख़ां साहब आप बहुत अच्छे आदमी हैं। हम आत के पाँचवें दिन नैनीताल जा रहा है। वहाँ से लौटकर आपसे मुलाक़ात करेगा। आप तो कई बार नैनीताल गया होगा। अब तो सब रईस लोग वहाँ जाता है।
ख़ां साहब नैनीताल क्या, बरेली तक भी न गये थे, पर इस समय कैसे कह देते कि मैं वहाँ कभी नहीं गया। साहब की नजरों से गिर न जाते! साहब समझते कि यह रईस नही, कोई चरकटा है। बोले– हाँ हुजूर कई बार हो आया हूँ।
काटन– आप कई बार हो आया है? हम तो पहली दफा जाता है। सुना बहुत अच्छा शहर है?
ख़ां– बहुत बड़ा शहर है हुजूर, मगर कुछ ऐसा बड़ा भी नहीं है।
काटन– आप कहाँ ठहरता? वहाँ होटलों में तो बहुत पैसा लगता है।
ख़ां– मेरी हुजूर न पूछें, कभी कहीं ठहर गया, कभी कहीं ठहर गया।
हुजूर के अक़बाल से सभी जगह दोस्त हैं।
काटन– आप वहाँ किसी के नाम चिट्ठी दे सकता है कि मेरे ठहरने का बंदोबस्त कर दें। हम किफायत से काम करना चाहता है। आप तो हर साल जाता है, हमारे साथ क्यों नहीं चलता।
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