लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

325 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


तुलिया ने फंदे को और कसा– हाँ, और क्या। जब तुम मुँह फेर लो तो कहीं की न रहूँ। दीन से भी जाऊँ, दुनिया से भी!

ठाकुर ने शिकायत के स्वर में कहा– अब भी तुझे मुझ पर विश्वास नहीं आता?

‘भौंरे फूल का रस लेकर उड़ जाते हैं।’

‘और पतंगे जलकर राख नहीं हो जाते?’

‘पतियाऊँ कैसे?’

‘मैंने तेरा कोई हुक्म टाला है?’

‘तुम समझते होगे कि तुलिया को एक रंगीन साड़ी और दो-एक छोटे-मोटे गहने देकर फँसा लूँगा। मैं ऐसी भोली नहीं हूँ।’

तुलिया ने ठाकुर के दिल की बात भाँप ली थी। ठाकुर हैरत में आकर उसका मुँह ताकने लगा।

तुलिया ने फिर कहा– आदमी अपना घर छोड़ता है तो पहले कहीं बैठने का ठिकाना कर लेता है।

ठाकुर प्रसन्न होकर बोला– तो तू चलकर मेरे घर में मालकिन बनकर रह। मैं तुझसे कितनी बार कह चुका।

तुलिया आँखें मटकाकर बोली– आज मालकिन बनकर रहूँ कल लौंडी बनकर भी न रहने पाऊँ, क्यों?

‘तो जिस तरह तेरा मन भरे वह कर। मैं तो तेरा गुलाम हूँ।’

‘बचन देते हो?’

‘हाँ, देता हूँ। एक बार नहीं, सौ बार, हज़ार बार।’

‘फिर तो न जाओगे?’

‘वचन देकर फिर जाना नामर्दों का काम है।’

‘तो अपनी आधी जमीन-जायदाद मेरे नाम लिख दो।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book