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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


जवाब मिला– कौन है?

‘मैं हूँ, राहगीर, तुम्हारा कुत्ता मुझे काट रहा है।’

‘नहीं, काटेगा नहीं, डरो मत। कहाँ जाना है?’

‘महमूदनगर।’

‘महमूदनगर का रास्ता तो तुम पीछे छोड़ आये, आगे तो नदी है।’

मेरा कलेजा बैठ गया, रुआंसा होकर बोला– महमूदनगर का रास्ता कितनी दूर छूट गया है?

‘यही कोई तीन मील।’

और एक लहीम-शहीम आदमी हाथ में लालटन लिये हुए आकर मेरे आमने खड़ा हो गया। सर पर हैट था, एक मोटा फ़ौजी ओवरकोट पहने हुए, नीचे निकर, पाँव में फुलबूट, बड़ा लंबा-तड़ंगा, बड़ी-बड़ी मूँछें, गोरा रंग, साकार पुरुष-सौन्दर्य। बोला– तुम तो कोई स्कूल के लड़के मालूम होते हो।

‘लड़का तो नहीं हूँ, लड़कों का मुदर्रिस हूँ, घर जा रहा हूँ। आज से तीन दिन की छुट्टी है।’

‘तो रेल से क्यों नहीं गये?’

रेल छूट गयी और दूसरी एक बजे छूटती है।’

‘वह अभी तुम्हें मिल जायगी। बारह का अमल है। चलो मैं स्टेशन का रास्ता दिखा दूँ।’

‘कौन-से स्टेशन का?’

‘भगवन्तपुर का।’

‘भगवन्तपुर ही से तो मैं चला हूँ। वह बहुत पीछे छूट गया होगा।’

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