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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


मुनिया की कथा सुनकर राजाराम ने एक आह भरी और कहा–‘उसे इस फूटे शीशे से कदाचित् इसलिए स्नेह है कि विनोद ने अपने हाथ से उसके सेंदुर-बिंदु लगाया था।’

‘मेरा भी यही खयाल है।’ मैंने उत्तर दिया।

‘भाई, झुरही को देखना चाहिए।‘

‘अवश्य, कल चलूंगा। मुझे सकही की गाथा बहुत दर्द-भरी प्रतीत होती है।’

‘मुझसे तो आज खाना न खाया जायगा।’ कुछ देर तक दोनों चुप हो रहे। निश्चय हुआ कि कल हम सकही को देखने प्रातःकाल ही जायेंगे।

रात्रि को मुझे कई बार स्वप्न में पगली झुरही के दर्शन हुए। वह फूटे शीशे को सामने रखकर कुंकुम बिंदु लगा रही थी। राजाराम ने इसी प्रकार का स्वप्न देखा। प्रातःकाल सकही के दर्शनों का उतावलापन हम लोगों को व्यग्र करने लगा। हम लोग शीघ्र ही तैला मंज़िल पहुँचे।

मंज़िल के थोड़ी दूर पर एक भीड़ दिखायी दी। बड़ा समारोह था। हम लोग ताँगे से उतर कर सीधे लैला मंज़िल की टूटी कोठरी में प्रवेश करने लगे जिसमें झुरही रहती थी, आज सारा मंज़िल सूना था। एक कोने में अँधा और लूला भिक्षुक पड़ा था। उससे ज्ञात हुआ कि एक भिखारिन मोटर से दब गयी है। वही सब भिक्षुक भागकर गये हैं। हम लोग आशंका से सिहर उठे। वेग से पैर उठाते हुए जनसकुंलता को चीरकर आगे बढ़े। एक स्त्री रक्त से लथपथ पड़ी थी। सिर फट गया था। पसलियाँ पिस गयी थीं। हाथ छाती पर रखा था। वह सेंदुर की डिब्बी को जोर से पकड़े थी। फूटा शीशा उसी के भीतर था।

‘यही झुरही है?’ राजाराम ने पूछा। मुझसे कोई उत्तर देते न बना, एक आह निकलकर वायु में मिल गयी।

।। समाप्त ।।

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