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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ



विद्रोही

श्री विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’

[ आप कानपुर में रहते थे। आप हँस-मुख और विनोदप्रिय स्वभाव के थे। आप को संगीत और फोटोग्राफी से विशेष प्रेम था। आप उपन्यास और कहानी लेखक हैं। आपकी रचनाओं में पारिवारिक और गार्हस्थ्य जीवन का स्वाभाविक और सफल चित्रण पाया जाता है। इस विषय के आप बेजोड़ लेखक थे।
उपन्यास–माँ, भिखारिणी।
गल्प-संग्रह–मधुशाला, मणिमाला। ]

‘मान जाओ, तुम्हारे उपयुक्त यह कान न होगा ।’

‘चुप रहो–तुम क्या जानो।’

‘इसमें वीरता नहीं है, अन्याय है।’

‘बहुत दिनों की धधकती हुई ज्वाला आज शांत होगी।’ शक्तिसिंह ने एक लम्बी साँस फेंकते हुए स्त्री की ओर देखा।

‘..............’

‘.............’

‘कलंक लगेगा, अपराध होगा।’

‘अपमान का बदला लूँगा। प्रताप के गर्व को मिट्टी में मिला दूँगा। आज मैं विजयी होऊँगा।’ बड़ी दृढ़ता से कहकर शक्तिसिंह ने शिविर के द्वार पर से देखा। मुगल-सेना के चतुर सिपाही अपने-अपने घोड़ों की परीक्षा ले रहे थे। धूल उड़ रही थी। बड़े साहस से सब एक-दूसरे में उत्साह भर रहे थे।

‘निश्चय महाराणा की हार होगी। बाईस हजार राजपूतों को दिन भर में मुगल-सेना काटकर सूखे डंठल की भाँति गिरा देगी।’ साहस से शक्तिसिंह ने कहा। ‘भाई पर क्रोध करके देश-द्रोही बनोगे...’ –कहते-कहते उस राजपूत बाला की आँखों से चिनगारियाँ निकलने लगीं।

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