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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


दिन भर की मार-काट के पश्चात् रात्रि बड़ी सुनसान हो गयी थी। शिविरों में से महिलाओं के रोदन की करुण ध्वनि हृदय को हिला देती थी।

हजारों सुहागिनों के सुहाग उजड़ गये थे। उन्हें ढाढ़स बँधाने वाला न था; था तो केवल हाहाकार, चीत्कार, कष्टों का अनंत पारावार! शक्तिसिंह अभी तक अपने शिविर में नहीं लौटा था। उसकी पत्नी भी प्रतीक्षा में विकल थी, उसके हृदय में जीवन की आशा-निराशा क्षण-क्षण उठती-गिरती थी।

अँधेरी रात में काले बादल आकाश में छा गये थे। एकाएक उस शिविर में शक्तिसिंह ने प्रवेश किया। पत्नी ने कौतूहल से देखा, उसके कपड़े खून से तर थे।

‘प्रिये!’

‘नाथ!’

‘तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हुई–मैं प्रताप के सामने परास्त हो गया!’

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