कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
‘हुजूर, नहीं-नहीं-नहीं,–राजा जी!’
‘क्यों रे, मेरी लड़की को ले भागनेवाला तू कौन था, बदमाश, पाजी?’
‘नहीं-नहीं-नहीं–’
उसके बिना कहे मैं समझता जा रहा था कि वह किन्ही विकट लाचारियों का शिकार बनाया गया है। लेकिन उस घटना पर जो क्षोभ मुझे भुगतना पड़ा था, वह उतारना तो चाहिए किसी पर। इसलिए उसे मैंने काफी कह-सुन लिया। फिर उसे रिहा कर देने का बंदोबस्त कर दिया।
छूटकर वह मेरे ही घर आया।
‘मालिक, –राजा जी–’
उसकी गड़बड़ गिड़गिड़ाहट में से मैंने परिणाम निकाला, वह खाली हाथ है, किराये का पैसा चाहता है, परंतु वह घर चला जायगा, नहीं तो उससे नौकरी या मजदूरी करवा ली जाय। मैंने उसे घर पर ही रहकर काम करने का हुक्म दिया।
डिक को मैंने सूचना दी–‘वही बुड्ढा सिक्ख आ गया।’
डिक ने कहा–‘उसे छुड़ा लो। उसे साथ लेकर उसके गाँव चलेंगे।’
‘हाँ, जरूर, अभी।’
हम बुड्ढे को साथ लेकर चल दिये। हमने देखा, बुड्ढा बिलकुल मनहूस नहीं है। बड़प्पन के आगे तो वह निरीह दीन हो जाता है, पर अगर उससे सहानुभूतिपूर्वक बोला जाय तो वह बड़ा खुशमिजाज बन जाता है, उसने सफर में तरह-तरह से हमारी सेवा की, तरह-तरह के किस्से सुनाये, लेकिन उस खास विषय पर किसी ने जिक्र नहीं उठाया। मानो वह विषय सबके हृदय के इतना समीप है कि जरा उँगली लगी तो वह कसक उठेगा।
सिंध घहराता हुआ बह रहा है, और हम स्लेट के पत्थरों के बीच एक पगडंडी से चुपचाप जा रहे हैं, पैदल।
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