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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


उन हजार फ़ानूसों में कसूमी बत्तियाँ जल रही थीं और कमरे की दीवार गुलाबी साटन के परदों से छिप रही थी। फ़र्श पर ईरानी कालीन बिछा था, जिस पर निहायत नफ़ीस और खुशरंग काम बना हुआ था। कमरा खूब लम्बा-चौड़ा था। उसमें तरह-तरह के ताजे फूलों के गुलदस्ते सजे हुए थे और हिना की तेज महक से कमरा महक रहा था। कमरे के एक बाजू में मखमल का बालिस्त भर ऊँचा एक गद्दा बिछा था। उस पर बड़ी सी मसनद लगी थी, जिस पर चार सुनहरे खम्भों पर मोती की झालर का चँदोवा तना था।

मसनद पर एक बलिष्ठ पुरुष उत्सुकता से किन्तु अलसाया बैठा था। इसके वस्त्र अस्त-व्यस्त थे। इसका मोती के समान उज्जवल रंग, कामदेव को मात करने वाला प्रदीप्त सौंदर्य, झब्बेदार मूछें, रस-भरी आँखें और मदिरा से प्रफुल्लित होंठ कुछ और ही समा बाँध रहे थे। सामने पानदान में सुनहरी गिलौरियाँ भरी थीं। इत्रदान में शीशियाँ लुढ़क रही थीं। शराब की प्याली और सुराही क्षण-क्षण पर खाली हो रही थी। वह सुगंधित मदिरा मानो उसके उज्जवल रंग पर सुनहरी निखार ला रही थी। उसके कंठ में पन्ने का एक बड़ा-सा कंठा पड़ा था और उँगलियों में हीरे की अँगुठियाँ बिजली की तरह दमक रही थीं। यही लाखों में दर्शनीय पुरुष लखनऊ के प्रख्यात नवाब वाजिदअली शाह थे!

कमरे में कोई न था। वह बड़ी आतुरता से किसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। वह आतुरता क्षण-क्षण पर बढ़ रही थी। एकाएक एक खटका हुआ। बादशाह ने ताली बजायी और वह लम्बी स्त्री मूर्ति सिर से पैर तक काले वस्त्रों में शरीर को लपेटे मानो दीवार फाड़कर आ उपस्थित हुई।

‘आहे मेरी गबरू! तुमने तो इंतजार ही में मार डाला। क्या गिलौरियाँ लायी हो?‘

‘मैं हुजूर पर कुर्बान!’ इतना कहकर वह काला लबादा उतार डाला। उफ गज़ब! उस काले आवेष्टन में मानो सूर्य का तेज छिपा था। कमरा चमक उठा। बहुत बढ़िया चमकीले विलायती साटन की पोशाक पहने एक सौंदर्य की प्रतिमा इस तरह निकल आयी जैसे राख के ढेर में से अंगार। इस अनिष्ट सौंदर्य की रूप-रेखा कैसे बयान की जाय? इस अँगरेजी राज्य और अंगरेजी सभ्यता में जहाँ क्षण-भर चमककर बादलों में विलीन हो जानेवाली बिजली, सड़क पर ढूँढ़ी जाय? इस अंधकारमय रात्रि में उसे खड़ा कर दिया जाय तो कसौटी पर स्वर्ण-रेखा की तरह दीप्त हो उठे, और यदि वह दिन के उज्जवल प्रकाश में खड़ी कर दी जाय, तो उसे देखने का साहस कौन करे? किन आँखों में इतना तेज है?

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