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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


‘वह विशुद्ध प्रेम, जो मुझे अपने देश के साथ है और जिसने मुझे अपने अभागे देशवासियों के दुःख-सुख का साथी बना दिया है, उसका बीज उस समय उगा था, जब मैं अपनी ग़रीब माँ को ग़रीबों के साथ हमदर्दी दिखाते और दुर्दशाग्रस्तों पर करुणा करते हुए देखता था मैं असत् की पूजा करने वाला अंधविश्वासी नहीं हूँ पर मैं स्वीकार करता हूँ कि कठिन विपत्ति के समय जब समुद्र मेरे जहाज को जलसमाधि देने पर तुला होता और उसे क़ागज की तरह उछालता होता या जब हवा की सनसनाहट की तरह बंदूकों की गोलियाँ मेरे कान के पास से सनसनाती हुई निकल जाती थीं और मेरे सिर पर गोले ओले की तरह बरसते होते थे, मैं अपनी स्नेहमयी माता को अपने बेटे के लिए भगवान् से विनती करते हुए देखता। मेरा वह साहस और वीरता, जिस पर बहुतों को अचरज होता है, इस अटल विश्वास का ही फल है कि जब एक पुण्यशीला देवी स्वरूप महिला मेरे लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रही है, तब मुझ पर कोई विपत्ति नहीं आ सकती।’

बचपन से ही गेरीबाल्डी की सहज निर्भीकता, स्वातंत्र्यप्रियता और दीन-दुखियों के साथ सहानुभूति का परिचय मिलने लगा। आठ साल का भी न होने पाया था कि एक स्त्री को डूबते देखकर मर्दानगी के साथ वह नदी में कूद पड़ा और उसे काल के गाल से निकाल लाया। इसके कुछ साल बाद उसके कुछ मित्र नौका-विहार कर रहे थे कि भयानक तूफान आ गया और नाव के जल-निमग्न हो जाने की आशंका होने लगी। गेरीबाल्डी किनारे से यह अवस्था देख रहा था, तुरंत हिम्मत बाँधकर पानी में कूद पड़ा और नौका को सकुशल किनारे लाया। उसके साहस और मानव-सहानुभूति की सैकड़ों कथाएँ लोगों की ज़बान पर हैं। यही गुण थे, जिन्होंने बाद में उसे राष्ट्र का कर्णधार और उसके गर्व की वस्तु बना दिया।

माँ-बाप यद्यपि निर्धन थे, पर बेटे की बुद्धि की तीक्ष्णता को देखकर उसे अच्छी शिक्षा दिलवायी। उनकी इच्छा थी कि वह वकालत का पेशा करे। पर एक ऐसे नवयुवक को, जिस पर सैनिक और नाविक जीवन की धुन सवार थी, मुक़दमों के सबूत ढूँढ़ने और पुरानी, दीमकों की चाटी ऩजीरें तलाश करने में तनिक भी दिलचस्पी नहीं हो सकती थी। इसलिए उसने सार्डीनिया की जलसेना में नौकरी कर ली और कई साल तक उस चित्त की दृढ़ता और कष्टसहिष्णुता का अभ्यास करता रहा, जिसने आगे चलकर उसी राष्ट्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति में बड़ी सहायता की।

इटली की दशा उन दिनों बहुत बिगड़ रही थी। उत्तरी भाग आस्ट्रिया के अत्याचारों से चीख-चिल्ला रहा था। दक्षिण में नेपुल्स के उलीउनों की धूम थी, मध्य देश में पोप ने अंधेर मचा रखा था और पच्छिम में पेडमांट के जोर-जुल्म का चक्र चल रहा था। पर चारों ओर राष्ट्रीय जागृति के चिह्न प्रकट हो रहे थे और युवकों के हृदय में अपने देश को विदेशियों के उत्पीड़नों से मुक्त करने, इटली को एक राष्ट्रीय राज्य के रूप में परिणत करने और दुनिया के सम्मानित राष्ट्रों की श्रेणी में स्थान दिलाने की उमंगें उठ रही थीं। यह उत्साह केवल शिक्षित वर्ग तक सीमित न था, साधारण जनता में भी आज़ादी का वह जोश पैदा हो चला था, जिसने फ्रांस के प्रभुत्व का तानाबाना बिखेर दिया। देशप्रेमियों ने ‘यंग इटाली’ (युवा इटली) नाम की एक संस्था स्थापित कर रखी थी, जिसका प्राण मेज़िनी जैसा सच्चा देशभक्त था। अतः उद्देश्य सिद्धि के अनेक साधनों और उपायों पर विचार करने के बाद, १८३२ ई० में यह निश्चय किया गया कि देश में राज्यों के विरुद्ध विप्लव कर दिया जाय और उसका आरंभ पेडमांट से हो।

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