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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


भारतवासियों की अव्यवस्थितता तो प्रसिद्ध ही है। समय का पालन ऐसा गुण है, जिससे साधारणतया हम वंचित हैं। किसी सभा-सम्मेलन में जाइए, वह अपने नियत समय से घंटे आध घंटे बाद अवश्य होगी। रेल की यात्रा को ही लीजिए। या तो हम दो डाई घंटे पहले स्टेशन पर पहुँच जाते हैं या इतना कम समय रह जाने पर कि दौड़कर गाड़ी में सवार होना पड़ता है। जस्टिस बदरुद्दीन वक्त की पाबन्दी का खास तौर से ध्यान रखते थे। थोड़ा सा व्यायाम वह नित्य करते थे। कितना ही आवश्यक कार्य उपस्थित हो, इस काम में अन्तर न पड़ता था। हाँ, बीमारी की हालत में लाचारी थी। बल्कि जिस दिन काम की भीड़ अधिक होती थी, उस दिन वह नित्य के समय से कुछ पहले ही व्यायाम कर लेते थे। शाम को हाईकोर्ट से उठकर क्वींस रोड के छोर तक पैदल जाना उनका नित्य नेम था और इसमें उन्होंने कभी अन्तर नहीं पड़ने दिया। ऐसे नियमबद्ध और समान गति से चलनेवाले दृष्टान्त जीवन में बहुत कम मिलते हैं।

११ अगस्त, १९०६ ई० को आप परलोकगामी हुए और भारतमाता के ऐसे सपूत बेटे की यादगार छोड़ी, जिस पर वह सदा गर्व करेगी।

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