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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


मौलाना १० बज़े से कलम लेकर बैठते और २ बजे तक बराबर लिखा करते थे। २ से ४ बजे तक कमरे में जाकर सोते थे या आराम से लेटे रहते थे। शाम को मित्रों से मिलने-जुलने चले जाते थे और अक्सर ८, ९ बजे रात को घर आते थे। लेख शैली जैसे पारदर्शितापूर्ण थी, वक्तृता ऐसी न होती थी। पर आरम्भ के बाद धीरे धीरे उसे भी रोचक बना लेते थे और उपसंहार बहुत मनोरंजक होता था।

काव्य रचना आपकी नाममात्र है। शुरू जवानी में कुछ ग़ज़लें कही थीं और दो मसनवियाँ ‘शबेग़म’ और ‘शबे वस्ल’ लिखीं, जो लोकप्रिय हुईं। परन्तु काव्यकला के पंडित थे और उस पर अकसर भाषण किया करते थे।

अन्तिम उपन्यास ‘नेकी का फल’ लिखा था, जो मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ। इस नाम से आपके महाप्रस्थान का सुन्दर अर्थ निकलता है।

विधि-विधान की विचित्रता को देखिए कि सन् १९२६ ई० को विदा करते हुए अपनी ही लेखनी से अपनी निधन वार्ता ‘दिलगुराज़’ के पन्नों पर लिखते हैं, और यह नहीं सोचते कि मैं वर्ष का वर्णन नहीं, किन्तु अपनी हालत लिख रहा हूँ। लिखते हैं–
‘‘इतनी ही थोड़ी सी मुद्दत में उसने बचपन की नादानियाँ, जवानी की उमंगें और बुढ़ापे की पुख्ताकारियाँ सब देख लीं और अब पाँच छः रोज का मेहमान है।’’

क्या मालूम था कि सचमुच यह लिखने के पाँच छः रोज के बाद मौलाना बीमार हो जायँगे और एक सप्ताह भी रोगशय्या पर रहना न बदा होगा।

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