लोगों की राय

उपन्यास >> मनोरमा (उपन्यास)

मनोरमा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8534

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

274 पाठक हैं

‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।


वज्रधर-मैंने तो ऐसी कोई बात नहीं देखी। बेचारे दिन-भर सामान की जांच-पड़ताल करते रहे। घर तक न गये।

विशालसिंह-यह सब तो आपके कहने से किया। आप न होते, न जाने क्या गजब ढाते। आपको पुरानी क्या मालूम नहीं। इसने मुझ पर बड़े-बड़े जुल्म किये हैं।

इसी के कारण मुझे जगदीशपुर छोड़ना पड़ा। बस चला होता, तो इसने मुझे कत्ल करा दिया होता।

वज्रधर-गुस्ताखी माफ कीजिएगा। आपका बस चलता तो क्या रानी जी की जान बच जाती, या दीवान साहब जिन्दा रहते? उन पिछली बातों को भूल जाइए। भगवान ने आज आपको ऊंचा रुतबा दिया है। अब आपको उदार होना चाहिए। मैंने ठाकुर साहब के मुंह से एक भी बात ऐसी नहीं सुनी, जिससे यह हो कि वह आपसे कोई अदावत रखते हैं।

विशालसिंह ने कुछ लज्जित होकर कहा– मैंने निश्चय कर लिया था कि सबसे पहला वार इन्हीं पर करूंगा, लेकिन आपकी बातों ने मेरा विचार पलट दिया। आप भी उन्हें समझा दीजिएगा कि मेरी तरफ से कोई शंका न रखे।

यह कहकर कुंवर साहब घर में गये। सबसे पहले रोहिणी के कमरे में कदम रखा। पति की निष्ठुरता ने आज उसकी मगान्ध आंखें खोल दी थीं।

कुंवर साहब ने कमरे में कदम रखते ही कहा– रोहिणी ईश्वर ने आज हमारी अभिलाषा पूरी की।

रोहिणी– तब तो घर में रहना और भी मुश्किल हो जाएगा तब कुछ न था, तभी मिजाज न मिलता था। अब तो आकाश पर चढ़ जाएगा। काहे को कोई जीने पायेगा?

विशालसिंह ने दुखित होकर कहा– प्रिये यह इन बातों का समय नहीं है। ईश्वर को धन्यवाद दो कि उसने हमारी विनती सुन ली।

रोहिणी– जब अपना कोई रहा ही नहीं, तो राजपाट लेकर चाटूंगी?

विशालसिंह को क्रोध तो आया, लेकिन इस भय से कि बात बढ़ जायेगी, कुछ बोले नहीं वहां से वसुमती के पास पहुंचे। वह मुंह लपेटे पड़ी हुई थी। जगाकर बोले-क्या सोती हो, उठो खुशखबरी सुनायें।

वसुमती– पटरानी को सुना ही आये, मैं सुनकर क्या करूंगी? अब तक जो बात मन में थी, वह आज तुमने खोल दी, तो यहां बचा हुआ सत्तू खाने वाले पाहुने नहीं हैं।

विशालसिंह दुःखी होकर बोले-यह बात नहीं है, वसुमती! तुम जानबूझकर नादान बनती हो। मैं इधर ही आ रहा था, ईश्वर से कहता हूं। उसका कमरा अंधेरा देखकर चला गया देखूँ क्या बात है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book