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उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास)

निर्मला (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8556

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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…


कृष्णा की आँखें डबडबा आईं। काँपती हुई आवाज से बोली-आज तुम क्यों नहीं चलतीं? मुझसे क्यों नहीं बोलतीं? क्यों इधर-उधर छिपी-छिपी फिरती हो? मेरा जी अकेले बैठे-बैठे घबड़ाता है। तुम न चलोगी, तो मैं भी न जाऊंगी। यहीं तुम्हारे साथ बैठी रहूँगी।

निर्मला–और जब मैं चली जाऊंगी, तब क्या करेगी? तब किसके साथ खेलेगी, किसके साथ घूमने जायेगी, बता?

कृष्णा–मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी। अकेले मुझसे यहाँ न रहा जायगा।

निर्मला मुस्कुराकर बोली-तुझे अम्मा न जाने देंगीं।

कृष्णा–तो मैं भी तुम्हें न जाने दूंगी। तुम अम्मा से कह क्यों नहीं देतीं कि मैं न जाऊंगी?

निर्मला–कह तो रही हूं, कोई सुनता है?

कृष्णा–तो क्या यह तुम्हारा घर नहीं है?

निर्मला–नहीं, मेरा घर होता तो कोई क्यों जबर्दस्ती निकाल देता?

कृष्णा–इसी तरह किसी दिन मैं भी निकाल दी जाऊंगी?

निर्मला–और नहीं क्या तू बैठी रहेगी! हम लड़कियां हैं, हमारा घर कहीं नहीं होता।

कृष्णा–चन्दर भी निकाल दिया जायगा?

निर्मला–चन्दर तो लड़का है, उसे कौन निकालेगा?

कृष्णा–तो लड़कियां बहुत खराब होती होंगी?

निर्मला–खराब न होतीं तो घर से भगाई क्यों जातीं?

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