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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तुम घर कब आने वाले हो?’’

‘‘यह फरवरी का महीना है। मई के प्रथम सप्ताह में परीक्षा होगी और पन्द्रह मई को कॉलेज बन्द हो जायेंगे। तभी आ सकूँगा।’’

‘‘काकी!’’ रजनी ने बात बीच में ही काटकर कहा, ‘‘यदि भाभी का गौना ले आओ तो हम उसको और इन्द्र भैया को नैनीताल ले जायेंगे।’’

‘‘वहाँ क्या होगा?’’

‘‘हम सब ग्रीष्ण ऋतु में वहाँ जाया करते हैं। पिताजी इन्द्र भैया को वहाँ चलने का निमन्त्रण दे रहे हैं। यदि भाभी को भी ले चलेंगे तो बहुत मजा रहेगा।’’

‘‘मैं इन्द्र की बहू को बुलाकर, घर उसके सुपुर्द करने का विचार कर रही हूँ। रमा की बहू के आने से पूर्व उसको घर की मालकिन बन जाना चाहिये।’’

‘‘नहीं माँ!’’ इन्द्र का स्पष्ट उत्तर था, ‘‘अभी गौना नहीं होगा। अभी तीन वर्ष की पढ़ाई और है, उसके पश्चात् ही गौना होगा।’’

इस दृढ़ता से कहे कथन पर तो इन्द्र के माता-पिता विस्मय से मुख देखते रह गये। रामाधार ने बात बदल दी। उसने कहा, ‘‘मैं रजनीदेवी के पिता का धन्यवाद करना चाहता हूँ। वे कब तक आयेंगे?’’

‘‘आने ही वाले होंगे। बाबा! उनका मैं जीवन-भर आभारी रहूँगा। इस कारण मेरी ओर से भी कह देना। एक बात और, क्या आप नानाजी से मिले हैं?’’

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