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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘मैंने पूछा, ‘ऑपरेशन के बगैर कोई इलाज नहीं क्या?’

‘आप घबराइये नहीं। हम इतना पढ़-लिखकर कोई गलत बात नहीं कर रहे हैं।’

‘‘मेरा चुप रहना मेरी रजामन्दी मानी गयी। एक फार्म मेरे सामने रख मुझसे दस्तखत करा लिये गये। बेगम को ऑपरेशन रूम में ले जाया गया। मैं बाहर खड़ा इन्तजार करने लगा। मुश्किल से पाँच मिनट गुजरे होंगे कि डॉक्टर लम्बा मुख लिये कमरे से निकला और रोनी सूरत बनाकर कहने लगा, ‘नवाब साहब! बहुत अफसोस है, बेगम साहिबा फ़ौत हो गयीं।’

‘‘फ़ौत हो गयीं?’ मुझको उसके कहने पर जरा भी यकीन नहीं आया। मैं भागकर कमरे में चला गया। बेगम खून से लथपथ मेज पर पड़ी थी। नर्सें पीत मुख, उसके शव को कपड़ों से ढक रही थीं। मैंने उसको बेगम का मुख ढाँपने से मना करते हुए कहा, ‘क्या हुआ है? क्या हुआ है?’

‘‘एक नर्स के मुख से निकल गया, डॉक्टर की नालायकी।’

‘‘उसी समय डॉक्टर मेरे पीछे-पीछे वहाँ पहुँच गया और मुझको बाँह से पकड़ धकेलता हुआ और मुख से हमदर्दी के अलफाज कहता हुआ बाहर ले गया।’’

‘‘मैं चाहता था कि डॉक्टर पर हर्जाने का दावा कर दूँ मगर वकीलों ने राय दी वह लाइसेंस्ड चिकित्सक होने से जिम्मेवार नहीं है।

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