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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
भीतर रामाधार और इन्द्र घुटनों में सिर दिये शोकमग्न बैठे थे। रमाकान्त क्रोध से लाल-पीला हो रहा था। रजनी उसको शान्त कर रही थी। बात बाहर औरतों में फैल गई थी। किसी ने विष्णु को अपनी भाभी को यह कहते सुन लिया था कि वह बहू के चरित्र के विषय में बताने आया था।
इन्द्र की माँ ने विष्णु और अपने पति तथा लड़कों को एक कमरे में जाते देखा था। उसका विचार था कि प्रातःकाल वाली बात ही हो रही होगी। इससे वह भाई की हिमायत करने के लिये उठकर वहाँ नहीं गयी। अपनी माँ, बहन और भाभी को भी वहाँ जाते देख वह चुपचाप बहू के पास बैठी रही।
बहू इस पूर्ण हल्ले का अर्थ नहीं समझ सकी थी। वह अभी घर की बातें पूछने में लज्जा और संकोच अनुभव करती थी। इस कारण अपनी सास के पास बैठी अन्य औरतों के लौट आने की प्रतीक्षा कर रही थी।
राधा रसोईघर में थी। गाँव की एक अन्य ब्राह्मणी से वह घर आये हुए मेहमानों के लिये भोजन तैयार करवा रही थी।
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