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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘आपके लड़के की सुनन्त के जश्न में हमको भी दावत मिली थी। मैं अपनी लड़कियों के साथ वहाँ गयी थी। बड़े नवाब साहब की बेगमें तो आपकी अंग्रेज बीवी के सामने चौका-बासन करने वाली लगती थीं। वह खूबसूरत तो बहुत है।’’

‘‘हाँ; इसी वजह से तो अपने मजहब से बाहर शादी करनी पड़ी है। मुझको वह बहुत ही सुन्दर प्रतीत हुई थी।’’

‘‘तो क्या अब खूबसूरत दिखाई नहीं देती? मैंने तो उसका बच्चा होने के बाद ही देखा है।’’

‘‘बेगम साहिबा! खूबसूरती एक मुकाबले की चीज हैं। हम इसको एक-दूसरे के तनासब में ही जानते और कहते हैं। तब तक मुझको उससे खूबसूरत कोई लड़की दिखाई नहीं दी थी, मगर...’’

अनवर कहता-कहता रुक गया। उसे चुप देख वह बुर्के वाली औरत बोल उठी, ‘‘तो क्या अब कोई उससे भी ज्यादा खूबसूरत लड़की नजर आ गई है?’’

‘‘हाँ, खयाल तो ऐसा ही है। कल एक लड़की देखी थी। मेरा मन उस पर रीझ गया है। मगर...’’

‘‘अभी इसमें भी मगर है? यह मगर क्या है?’’

‘‘सवाल तो उस लड़की के वालदैन का है। अभी उनसे बातचीत नहीं हुई। फिर वे भी रईस हैं। क्या जाने दूसरी जगह पर अपनी लड़की को देना चाहेंगे या नहीं।’’

‘‘आपके पास रुपये की तो कमी है नहीं। सुना है आपके वालिद शरीफ बहुत ही कंजूस हैं और उन्होंने सन्दूक-के-सन्दूक सोने-चाँदी से भर रखे हैं?’’

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