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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘हम कम-से-कम वाली बात भी शादी के बाद करना चाहती हैं। मुसलमान खातूत होने की वजह से हम किसी गैर के सामने बे-पर्दा नहीं होना चाहतीं।’’
‘‘इस पर भी मैंने तुममें से एक को तो देखा है?’’
‘‘वह इत्तफाकिया हो गया था। उस हालत पर हमारा काबू नहीं था।’’
‘‘आपसे शादी से पेशतर, अगर मैं यह शर्त लगा दूँ कि बिना सूरत-शक्ल देखे मैं शादी नहीं करूँगा तो फिर क्या होगा?’’
‘‘तो शादी नहीं होगी।’’
‘‘उससे भी नहीं, जिसको मैंने देखा है और मंजूर किया है?’’
‘‘नहीं। मगर हजरत! क्या यह कहावत गलत है कि हाँड़ी में से एक दाना देखकर सारी हाँड़ी के पकने का अन्दाज हो सकता है?’’
‘‘बात को ठीक है। मगर मेरी गुजारिश है कि न तो यह कुनबा हाँड़ी है और न ही आप लोग उस हाँड़ी के दाने हैं। सगी बहनें भी एक जैसी नहीं होती, फिर आप तो जुदा-जुदा माँ की बेटियाँ हैं।’’
‘‘देखिये जी! हम सब लड़कियाँ हैं। सब नवाब साहब करामत हुसैन की लड़कियाँ हैं। पढ़ी-लिखी हैं और सब कुरआन की तिलावत कर सकती हैं। इसके भी अलावा जवान हैं, खूबसूरत हैं और पाक-दामन हैं। और क्या चाहिये आपको?’’
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