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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘क्यों? क्या बात है, अब्बाजान?’’
‘‘मैं सोच रहा था कि काश, मैं इस वक्त जवान होता!’’
‘‘अब्बाजान! यह तो सबके साथ होने वाला है। मैं समझता हूँ कि आपने अपने जमाने में कम ऐश नहीं उड़ाई होगी।’’
‘‘मगर बेटा! इससे दिल भरता नहीं। जिस्म जवाब दे रहा है, मगर रूह तो जवानी को पुकार रही है।
‘‘अच्छा अनवर!’’ नवाब साहब ने बात बदलकर कहा, ‘‘लड़के का क्या होगा?’’
‘‘अभी तो अपनी माँ के पास है। मगर वह पसन्द करेगी कि वह हमारे पास रहे।’’
‘‘यह ठीक है। तुमको मान जाना चाहिये।’’
अब्बाजान! बिना माँ के उसकी परवरिश मुश्किल हो जायेगी।’’
‘‘कुछ मुश्किल नहीं होगी। उसकी परवरिश की जिम्मेदारी फातिमा बेगम की रहेगी।’’
‘‘इसकी जरूरत ही क्या है? चार बीवियाँ आने वाली है। उनके बहुत बच्चे हो जायेंगे अब्बाजान!’’
‘‘और अगर कोई भी न हुआ तो?’’
‘‘कोई वजह तो मालूम होती नहीं।’’
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